पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मराठा को साथ लिया । शम्भाजी को कृष्णजी विश्वनाथ के घर छोड़ा। शेष सहचर वस्त्रों में अपने शस्त्र छिपाए कुछ घोड़ों पर कुछ पैदल, कोई साधु, कोई वैरागी, कोई व्यापारी बन कर उनकी मण्डली से आगे-पीछे उनकी सुरक्षा की दृष्टि से छिप-छिपकर चले। शेष मराठों को सीधा महाराष्ट्र शीघ्र से शीघ्र पहुंचने का शिवाजी ने आदेश दिया। तानाजी ने अपने सशस्त्र सैनिक आगरा और मथुरा के मार्ग पर नङ्गलों में दिपा दिए । उन्हें आदेश था कि यदि मुगल सैनिक-हरकारा, जो कोई भी इस मार्ग पर आता-जाता देखा जाय, काट डाला जाय । स्वयं तानाजी आगरे में अपने गुप्तचरों के साथ रहकर बादशाह की गतिविधि देखने लगे। आकाश में बादल छाए हुए थे। गहरी अंधेरी रात थी। कुछ देर पूर्व वर्षा होकर चुकी थी। अब ठण्डी हवा बह रही थी। तीनों छद्मवेशी साधु चुपचाप तेजी से प्रयाग की राह चल रहे थे। अभी मथुरा से कुछ ही फासले पर पहुंचे थे कि सहसा उन्हें घोड़ों की टाप सुनाई दी। शिवाजी चौकन्ने हो गये। उन्होंने सहसा हाथों का चीमटा जोरों से पकड़ लिया। उन्होंने छिपने की चेष्टा की, परन्तु यह सम्भव नहीं रहा। सवारों ने उन्हें देख लिया था । निरुपाय शिवाजी और उनके साथियों ने चिमटा वजा-बजाकर 'हरेराम हरेराम हरे हरे' गाना प्रारम्भ किया । सवार दो थे। वे सशस्त्र थे। उन्होंने कड़क कर कहा-"कौन हो तुम?' "गोसाँई हैं। मथुरा से आ रहे हैं बाबा, चित्रकूट जाने का संकल्प है।" सवार ने डपट कर कहा-"हम आगरे जा रहे हैं पर रास्ता भूल गए हैं । आगे-आगे चलकर रास्ता बताओ।" शिवाजी ने कनखियों से अपने साथी रघुनाथ की ओर देखा । १२६