पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उसने कसकर एक चिमटा एक सवार के सिर पर मारा। सवार चीखकर जमीन पर आ गिरा। दूसरे सवार ने तलवार सूतकर शिवाजी पर वार किया। पर शिवाजी उछलकर दूर जा खड़े हुए । सवार तलवार हवा में घुमाता हुआ घोड़ा दौड़ाकर शिवाजी पर आ पड़ा। घोड़े की झपट से शिवाजी गिर गए। मुगल सवार ने उनका सिर काट लेने को तलवार हवा में ऊँची की, तभी एक तीर उसके कलेजे को पार कर गया। सवार घूमकर धरती पर आ गिरा। इसी समय एक मराठा वीर ने कहीं से आकर तलवार से. दोनों का सिर काट लिया। शिवाजी ने कहा-"तुम्हारा नाम क्या है, वीर?" "मैं वेंकटराव हूँ, पृथ्वीनाथ ।" "तुम्हारा नाम याद रखंगा।" "महाराज, अभी आप इन म्लेच्छों के घोड़े लेकर रातों रात कूच करें। तीसरा मेरा घोड़ा ले लें। यहाँ पाँच मील तक मेरा पहरा है । जङ्गल निरापद है । पर आप जितनी जल्दी दूर निकल जाँय, उतना ही उत्तम है ।" शिवाजी ने स्वीकार किया। तीनों साधु घोड़ों पर चढ़कर वायु वेग से उड़ चले। अब वे रातों रात चलते । दिन में जङ्गलों, पर्वत कन्दराओं या नदी के कछार में छिपे पड़े रहते । प्रयाग तक का मार्ग उन्होंने सकुशल समाप्त कर लिया। प्रयाग के निकट आकर उन्होंने घोड़ों को जङ्गल में छोड़ दिया । और तीनों अनोखे साधु चिमटा वजाते, रामधुन गाते प्रयोग में प्रविष्ट हुए। परन्तु प्रयाग में उन्हें बड़े कठिन प्रतिवन्धों का सामना करना पड़ा। बादशाही हुक्म यहाँ आ चुका था और आते-जाते लोगों पर कड़ी नजर रखी जाती थी। प्रयाग का किलेदार सूबेदार बहादुरखाँ बड़ा ही सख्त आदमी था। उसने सैकड़ों सैनिकों को राह - घाट पर शिवाजी की तलाश में लगा दिया था। - १२७