परन्तु शिवाजी ने बड़ी प्रत्युत्पन्नमति और चतुराई से काम लिया। दो दिन प्रयाग में ठहरकर उन्होंने किलेदार की गतिविधि को देखा और अवसर पाकर साधुओं के एक अखाड़े के साथ वहां से चल दिए। बनारस में वहां के फौजदार अली कुली ने उन्हें सन्देह में गिरफ्तार कर लिया। शिवाजी ने आधीरात को उससे भेंट करके कहा-"शिवाजी ही हूँ, लेकिन तुम मुझे चले जाने दो तो यह एक लाख का हीरा नजर करता हूँ। दकन पहुँचकर एक लाख रुपया और दूंगा।" उस लालची ने हीरा लेकर उन्हें छोड़ दिया। वहां से छुटकारा पाते ही वे गया, बिहार, पटना और चांदा होते हुए नदी नाले पर्वतों और जंगलों की खाक छानते अन्ततः दक्षिण जा पहुँचे । ४८ माता और पुत्र राजगढ़ के महलों में जीजाबाई अत्यन्त व्याकुलता से दिन बिता रही थीं। शिवाजी को दक्षिण से गए अब नौ मास व्यतीत हो रहे थे। वे सवा तीन मास आगरे में कैद रहे । वहां से पलायन करने और काशी तक पहुँचने के समाचार भी मिले थे, परन्तु उसके बाद कोई समाचार न मिला था। प्रातःकाल का समय था और जीजाबाई भवानी के मन्दिर में पूजा कर रही थीं। मोरेश्वर उनके निकट हाजिर थे। जीजाबाई हाथ जोड़े देवी से अरदास कर रही थीं कि हे देवी, मेरा पुत्र कहाँ है, उसे मेरी गोद में लायो। मोरेश्वर कह रहे थे कि मुझे आगरे से विश्वस्त समाचार मिले हैं कि शत्रुओं में प्रसन्नता के चिह्न नहीं हैं । यह मंगल सूचक है । आप चिन्ता न करें। अभी ये बातें हो ही रही थीं कि दो वैरागियों ने आकर मन्दिर के द्वार पर मत्था टेका । जीजाबाई उन्हें १२८
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