पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१३१

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प्रणाम करने उठी तो एक ने तो 'कल्याणमस्तु, आशा पूर्ण होय' कह कर आशीर्वाद दिया; पर दूसरा दौड़ कर जीजाबाई के चरणों में लिपट गया। जीजावाई एकदम पीछे हट गईं । उन्होंने कहा-“यह क्या किया, वैरागी होकर गृहस्य के चरण पकड़ लिए।" इसी समय वैरागी के सिर पर उनकी दृष्टि पड़ी। "अरे मेरा शिव्वा है" कह कर उन्होंने उसे छाती से लगा लिया। राजगढ़ में हलचल मच गई । 'महाराज आ गए, महाराज आ गए' की धूम मच गई । क्षण भर ही में तोपें गरज उठी और मराठा सरदार प्रा- आकर महाराज को मुजरा करने लगे। अभी तक शिवाजी वैरागी के वेश में खड़े थे । जीजाबाई ने कहा-"अरे शिव्वा, तू अभी तक मेरे आगे वैरागी के वेश में खड़ा है । मोरेश्वर, जल्दी करो, अपने महाराज को पवित्र तीर्थोदक से स्नान करा- कर राजसी ठाठ से सज्जित करो । राज्य भर में अन्न, वस्त्र, स्वर्ण आदि गरीबों और ब्राह्मणों को बांटा जाय।" परन्तु शिवाजी अटल चट्टान की भांति चुपचाप खड़े थे । उनके नेत्रों में गत पूरे नौ मास का कठिन संघर्ष- मय जीवन छा रहा था । भूत भविष्य के बड़े-बड़े रेखाचित्र उनके मस्तिष्क में उभर रहे थे, कभी उनकी आंखों में अपनी विपत्ति और असहायावस्था के भाव पाने पर जल थिरक आता था और कभी बदले की भावना से आँखों में भाग निकलने लगती थी। इसी समय अणाजी दत्ता ने आकर हंसते हुए शिवाजी के चरण: पकड़ कर कहा-“मत्था टेकू वैरागी बाबा।" "घुत्, ब्राह्मण होकर ऐसा काम ?" "जय, जय, महाराज, जय जय छत्रपति ।" दशों दिशाएँ जयजयकार से गूंज उठीं। सब ने नजर उठाकर देखा । तानाजी मलूसरे हंसते हुए जय- जयकार करते हुए आ रहे हैं। . १२६