पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१३२

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शिवाजी ने आगे बढ़ कर उन्हें छाती से लगाया और पूछा- . "कहो, आगरे में कपटी आलमगीर पर मेरे पीछे क्या बीती ?" तानाजी ने हंसते-हंसते कहा-"कुछ न पूछिए, महाराज । सारे आगरे में शोर मच गया कि शिवाजी राजे हवाई शरीर रखते हैं, आस- मान में उड़ सकते हैं। ५० मील की छलांग मार सकते हैं । बादशाह की नींद हराम हो गई। उसे भय हुआ कहीं शाइस्ताखां की तरह या अफजलखां की तरह आप ऊपर हवा में से न टूट पड़ें । उसने अपने शयनागार का पहरा कड़ा कर दिया। मैं तो दरबार में यह चर्चा होते छोड़ आया हूँ कि बादशाह सोच और चिन्ता से बीमार हो गया है।" "भगवती प्रसन्न हो, वह अच्छा हो जाय और जब मरे मेरी तलवार से मरे। शिवाजी ने गम्भीर वाणी से कहा । एक बार फिर जयजयकार हुआ और उन्होंने मोरोपन्त से पूछा- "कहिए, यहां के क्या हाल चाल हैं ?" "महाराज, जब तक आप बन्धन में रहे, हम बेबस बैठे रहे । पर आपकी मुक्ति का समाचार सुनकर हमने अपनी-अपनी हलचलें आरम्भ कर दी हैं । गोलकुण्डा और बीजापुर मिल गए हैं। उन्होंने ६,००० घुड़सवार तथा २५,००० पैदल सेना सहायता को भेजी। हम लोग भी भीतर ही भीतर उनके भले में रहे । दक्षिणी किलेदारों ने अपने मातहत घुड़सवारों द्वारा मुगल सेना की दुर्गति कर डाली है । लकड़ी, अनाज, घास, और पानी चारा उन्हें कोई भी वस्तु नहीं मिलती। इधर अकाल भी पड़ गया, उपज हुई ही नहीं। अब शत्रु को पानी का भी कष्ट है ।" “यही कारण हुआ जयसिंह की विफलता का।" "हां महाराज, उसके पास न धन रहा न सेना, न रसद और न पानी । उसने लोहगढ़, सिंहगढ़, पुरन्दर, माहुली और पन्हाला दुर्ग में तो सेना, रसद और युद्ध सामग्री रखी । बाकी सव किलों के दरवाजे और परकोटे तोड़ कर छोड़ दिया । उन पर मैंने अधिकार कर लिया। सबकी मरम्मत १३०