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पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१३८

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सच्चे इस्लामधर्म को राज्य में फैलाए और राजकीय शासन द्वारा प्रजा से उसका पालन कराए। इस प्रकार के राज्य में इस्लाम में अविश्वास करना नियमानुसार राज-द्रोह समझा जाता है और यह मान लिया जाता है कि विधर्मी व्यक्ति ने ईश्वर के संसारी पार्थिव प्रतिनिधि बाद- शाह की सत्ता का अपमान करके ईश्वर के प्रतिद्वन्द्वी झूठे देवी-देवताओं की पूजा की । इसलिए वह दण्ड का अधिकारी है । ऐसी हालत में कट्टर इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य जाति या धर्म के प्रति किसी प्रकार की दया या उदारता प्रकट करना अनुचित माना जाता है । इस्लामी धर्म के अनुसार ईश्वर के साथ अन्य देवताओं पर विश्वास रखना भी कुफ है। इसलिए इस्लामी धर्म के अनुसार सच्चे इस्लाम धर्म के अनु- यायी का जिहाद करना एक प्रथम और महत्वपूर्ण कर्तव्य बन जाता है। जिहाद के सम्बन्ध में सच्चे मुसलमानों के लिए ये आदेश हैं कि जब पवित्र माह समाप्त हो जाए तब उन सब आदमियों को जो ईश्वर के साथ दूसरे देवताओं के नाम जोड़ते और पूजते हैं, जहाँ मिलें, मार डालो । पर यदि वे धर्म परिवर्तित कर लें तो उन्हें अपनी राह जाने दो और उनसे कहो कि वे तोबा करें और यदि वे फिर विधर्मी हो जाएं तो उनसे लड़ो। इस्लामी आदेश यह भी है कि काफिरों के देश में उस समय तक युद्ध करो जब तक कि वे इस्लामी राज्य के दायरे में पूर्ण रूप से न आ जाएं। इन धार्मिक एवं राजनैतिक सिद्धान्तों के अनुसार ऐसी विजय के बाद उस देश के काफिरों की सारी आबादी मुसलमानों की गुलाम बन जाती है । सम्पूर्ण मनुष्यों को इस्लाम के झण्डे के नीचे ले आना और उन्हें मुस्लिम बना कर उनके हर प्रकार के धार्मिक मतभेदों को मिटा देना ही इस्लामी राज्य का आदर्श है। यति इस्लामी राज्य के अन्तर्गत कोई काफिर रहने दिया जाय तो वह केवल अपवाद ही माना जाना चाहिए परन्तु ऐसी परिस्थिति देर तक नहीं रह सकती, कुछ काल तक