पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१३९

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ही अस्थायी रूप से रह सकती है । ऐसे विधर्मी को इस्लामी धर्म के नियमानुसार सव राजनैतिक और सामाजिक अधिकारों से वंचित कर दिया जाना चाहिए जिससे बह शीघ्र ही उस अनोखी इस्लामी आध्या- त्मिक ज्योति को प्राप्त कर ले और उसका नाम एक सच्चे मुसलमान की सूची में लिख दिया जाय । इस धार्मिक दृष्टिकोण से कोई भी अन्य धर्मावलम्बी मुसलमानी राज्य का नागरिक कदापि नहीं बन सकता । वह उस राज्य के दलित समाज का एक ऐसा सदस्य बन जाता है जिसकी स्थिति लगभग गुलामों जैसी होती है । और यह मान लिया जाता है कि ईश्वर ने जो उसे जीवन और धन दिया है, जिसका कि वह उपभोग कर रहा है, और इसके लिए इस्लामी शासक उसे जो प्राणदान देते हैं उसके बदले में उसे अनेक राजनैतिक और सामाजिक अधिकारों का त्याग करना अनिवार्य हो जाता है और जो शासक उसे विधर्मी होने पर भी जीवित रहने देता है उसके इस उपकार के बदले उसे एक कर देना उसका कर्तव्य हो जाता है जिसे 'जजिया' कहते हैं । इसके अतिरिक्त यदि वह जमीन का मालिक है तो उस पर उसे खिराज देना चाहिए और सेना के खर्च के लिए भी अलग कर देना चाहिए। यदि वह स्वयं सेना में भरती होना चाहे तो वह ऐसा नहीं कर सकता। विधर्मी को 'जिम्मी' कहते हैं। कोई भी जिम्मी किसी प्रकार का बढ़िया और महीन कपड़ा नहीं पहन सकता, न वह घोड़े पर चढ़ सकता है, न वह शस्त्र धारण कर सकता है । प्रत्येक मुसलमान के साथ उसे सम्मानपूर्वक पूरी दीनता दिखाते हुए दरिद्र वेश में रहना चाहिए, और अपने आचरणों से यह प्रमाणित करना चाहिए कि वह विधर्मी और विजित जाति का आदमी है। कोई भी जिम्मी किसी भी हालत में मुसलमानी राज्य का नागरिक नहीं है। वह अपनी धार्मिक क्रियाओं, पूजा-पाठ आदि के सम्बन्ध में सार्वजनिक रूप में न तो बात ही कर सकता है और न प्रदर्शन । १३७ .