पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१४०

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अदालतों में गवाही देने, फौजदारी कानून, विवाह आदि के मामलों में उस पर अनेक अयोग्यताएँ लादी गई हैं। उसे अदालत में गवाही देने का अधिकार नहीं है। एक तरफ तो विधर्मियों के लिए ऐसे कठोर और अपमानजनक नियम थे, दूसरी ओर धर्म छोड़ कर इस्लाम स्वीकार कर लेने वालों को धन अथवा नौकरी दिए जाने के प्रलोभन भी थे। अरब के विजेताओं ने सर्वत्र सहनशीलता के नियमों का पालन किया था किन्तु वाद में तुर्कों के शासन काल में विर्मियों के लिए यह कठोर नियम अपनाए गए और इस प्रकार जिहाद में काफिरों को मारना और उनके धार्मिक स्थानों को नष्ट करना पुण्य कार्य माना गया। इससे मुसलमानों में एक ऐसी मनोवृत्ति पैदा हो गई कि उनके स्वभाव में लूटमार और नरहत्या एक धार्मिक कार्य और ईश्वरीय आदेश की भांति माना जाने लगा। यहाँ तक कि वासनाओं को वश में करने और इन्द्रियों को दमन करने की अपेक्षा काफिर को कत्ल करना और उसका धन लूट लेना एक मुसलमान के लिए स्वर्ग प्राप्ति का कारण बन गया। यही कारण था कि इस्लाम के आदर्श अपने अनुयायियों के सच्चे हितों की उन्नति में सहायक नहीं हुए.। इस्लाम की इस नीति के कारण सम्पूर्ण इस्लामी संस्था एक ऐसा संगठन बन गई जिसका कार्य केवल युद्ध था। मुसलमान नए-नए स्थानों को जीतने और लूटने की मनोवृत्ति को मन में पनपाते रहे। भारत में जब मुसलमानी राज्य विस्तार की चरम सीमा को पहुँच गया और आसाम और चटगांव की पहाड़ियों से जा टकराया तो उसने दक्षिण की ओर रुख करके महाराष्ट्र की सूखी चट्टानों में अपनी राह बनाने की निष्फल चेष्टा की। परन्तु राज्य का कोई स्थायी आर्थिक आधार न था। इन मुस्लिम नेताओं और विजे- ताओं में योग्यता भी न थी कि वे निरन्तर चलने वाले युद्धों में टिक भी सकें १३८