कारगुजारी समझने लगे। कर वसूल करने के लिए प्रायः बल का प्रयोग आवश्यक हो जाता था। इससे चारों ओर हाहाकार मच गया। जजिया कर लगाने के प्रत्यक्ष फल' दो हुए सरकार की प्राय बढ़ गई और नए मुसलमानों की संख्या में वृद्धि होने लगी। बहुत से स्थानों में ६ मास के अन्दर-ही-अन्दर सरकारी खजाने की आय चौगुनी हो गई । औरंगजेब ने प्रान्त-शासकों को लिख दिया था, “तुम्हें अन्य सब प्रकार के करों को माफ करने का अधिकार है, परन्तु जजिया किसी को माफ नहीं किया जा सकता।" गुजरात में केवल जजिया से जो आय थी, वह शेष सारी आय का लगभग ३१ फीसदी थी। इस प्रकार जजिया लगाने का तुरन्त परिणाम यह हुआ कि राज्य की आय बढ़ गई। दूसरा परिणाम यह हुआ कि नौ-मुसलिमों की संख्या बढ़ने लगी। बहुत से हिन्दू, जो नहीं दे सकते थे, मुसलमान बना गए औरंग- जेब प्रसन्न होता था कि कठोर उगाही से हिन्दू लोग इस्लाम ग्रहण करने लिए बाधित होते थे। ये दोनों जजिया के प्रत्यक्ष और तत्काल परिणाम थे । परन्तु उसके जो अप्रत्यक्ष और अन्तिम परिणाम थे, वे इनसे कहीं अधिक महत्वपूर्ण थे। सोने के अंडे देने वाली चिड़िया जिन्दा रहकर अंडा दे सकती है.। यदि उसमें से एक बार ही सब अंडे लेने का प्रयत्न किया जाय तो वह स्वयं ही न रहेगी, फिर अण्डे कहाँ से आएँगे। जजिया का बोझ पड़ने से हिन्दू व्यापारी शहरों को छोड़कर भागने लगे, क्योंकि शहरों में ही वसूली का जोर था। इससे व्यापार थोड़े ही दिनों में चौपट हो गया। छावनियों में विशेष दिक्कत होने लगी। हिन्दू व्यापारियों के भाग जाने से फौजों को अन्न मिलना भी कठिन हो गया। जब प्रान्तों के शासकों या सेनापतियों की ओर से यह सिफारिश आती कि कुछ समय के लिए जजिया वसूल न किया जाय, तो औरंगजेब का जोरदार इन्कार पहुंच जाता । अन्तिम फल यह हुआ कि शहरों का व्यापार १४४
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