पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जड़ ने लगा, जिससे केवल जजिया कर की ही नहीं, वस्तुतः हर प्रकार की सरकारी आमदनी घटने लगी। चौसर का दाव वसन्त के सुन्दर दिन थे। शिवाजी इन दिनों राजगढ़ में रहकर औरंगजेब की जबर्दस्त संग्राम-योजना की जवाबी तैयारी कर रहे थे। परन्तु जीजाबाई इन दिनों प्रतापगढ़ दुर्ग में थीं। एक दिन सायंकाल के समय एक बुर्ज पर खड़ी वे सूर्यास्त का सुन्दर दृश्य देख रही थीं कि दूर से उन्हें सिंहगढ़ का बुर्ज दीख पड़ा। उसे देखते ही उनके मन में विचार आया कि मेरे शिवा के रहते मेरी आँखों के सन्मुख यह शत्रु का किला खड़ा है। उन्होंने तत्काल एक दूत शिवाजी के पास रवाना किया । शिवाजी को तत्क्षण ही चले आने की आज्ञा थी। शिवाजी माता का आदेश पाते ही ताबड़तोड़ आ हाजिर हुए। आकर उन्होंने माता की वन्दना की और आज्ञा का कारण जानना चाहा। जीजाबाई ने कहा-"प्राओ बेटे, एक वाजी चौसर. खेलें ;"* शिवाजी ने समझा, माता का कोई गूढ आशय है। वे चौसर खेलने लगे। उन्होंने कहा-"माता, पहला पासा आप डालें।" "नहीं बेटे, राजा की विद्यमानता में कोई पहल नहीं कर सकता। यह राजपदवी का अधिकार है।" शिवाजी ने हंसकर पासा फेंका पर पासा अच्छा न पड़ा। तब जीजाबाई ने पासा फेंका। वह अच्छा निकला। शिवाजी ने कहा-"मैं हार गया । कहिए, क्या भेंट करूं।" "मुझे सिंहगढ़ चाहिए।" १४५