सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शिवाजी सन्न रह गए । उन्होंने कहा-"बड़ा कठिन वचन मांगा, माता।" "पुत्र, यह शत्रु का किला मेरी ही आँखों के सामने शूल वनकर खड़ा है। इसे बिना जय किए तेरा राज्य अधूरा है।" कुछ देर शिवाजी चुपचाप खड़े सोचते रहे। फिर उन्होंने पालकी लाने की आज्ञा दी और माँ से कहा-"चलिए माताजी, राजगढ़ चलें।" राजगढ़ में आकर भोर ही शिवाजी ने दरबार किया। सब सामन्त सरदार एकत्र हुए। दरबार में १० पानों का बीड़ा चादर विद्या कर रखा गया । शिवाजी ने कहा-'कौन वीर प्राणों की बाजी लगाकर किला सर करेगा।" परन्तु सिंहगढ़ का नाम सुनकर सब सन्नाटे में आ गए। प्रथम तो सिंहगढ़ अजेय दुर्ग था। दूसरे इस समय उदयभानु उसका किलेदार था जो शारीरिक बल' में राक्षस के समान था। दुर्ग में दुर्दान्त पठानों की सेना थी वह भी अजेय समझी जाती थी। इसके अतिरिक्त इसी दुर्ग में वह पठान सेनापति भी था जिसने तानाजी की बहन को हरण किया था । जव बड़ी देर तक सभा में सन्नाटा रहा और किसी ने बीड़ा नहीं उठाया तो शिवाजी ने शेर की भाँति दहाड़ कर कहा- “तानाजी मालूसरे को बुलाना होगा। वही वीर यह वीड़ा उठाएगा।" तत्काल एक तीव्रगामी साँड़नी-सवार तानाजी को बुलाने रवाना हो गया जहाँ वे अपने पुत्र के ब्याह के लिए छुट्टी लेकर अभी कुछ दिन पूर्व गए थे। ५४ साँड़नी-सवार का सन्देश ग्राम में बड़ा कोलाहल' था। बालक धूम मचा रहे थे और विविध वस्त्र पहने स्त्री-पुरुष काम-काज में व्यस्त इधर-से-उधर दौड़-धूप १४६