पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/२०

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"तो तू क्या चाहता है, वह कह ।" "माता, आशीर्वाद दो कि मरहठों की वीरता को दासता की कालिन्त्र से मुक्त करने में तुम्हारा शिव्या समर्थ हो।" "आशीर्वाद देती हूं। पर बेटे, अपने बलाबल का भी तो ध्यान रख । व्यर्थ शाहियों को छेड़-छाड़ कर अपने सिर बला न बुला। तेरे पिता ने जैसे अपना यश और मान बढ़ाया है, वैसे ही तू भी बढ़ा । समय बलवान है यह मत भूल।" "यह तो मुझसे न हो सकेगा मां, तुम कहो तो मैं कहीं देश से वाहर चला जाऊं।" "चल, फिर मैं भी तेरे साथ चलूं।" "पाप क्यों चलेंगी?" "तो मैं क्या तुझे छोड़ दूंगी? सुख-दुख में मैं तेरे साथ ही रहूंगी। मैं जानती हूँ, मेरी कोख में तू अवतारी जन्मा है । तुझे मैं क्या समझाऊं, मैं तो प्रेमवश कहती हूँ।" शिवाजी माता के चरणों में लोट गए और बोले -"माता, आश्वस्त रहो । तुम्हारा शिवा प्राण रहते ऐसा कोई काम न करेगा जो तुम्हारी कोख को लजाए।" माता पुत्र को छाती से लगाकर प्रेम के आंसू बहाती रही। शिवाजी का उदय सन् १६४६ में दादाजी कोंगदेव की मृत्यु होजाने पर शिवाजी ने अपनी स्वतन्त्रता की हुंकार भरी और पहला वार तोरण के किले पर किया । यह किला पूना के पश्चिम में २० मील पर था । वहाँ के किलेदार से उन्होंने किला छीन लिया। किले में बीजापुर राज्य के खजाने के दो लाख हूण शिवाजी के हाथ लगे । उन्होंने वकील भेजकर बीजापुर दरवार १८