में प्रकट किया कि उन्होंने यह काम राज्य के हित की दृष्टि से किया है। दूत ने शिवाजी की बहुत प्रशंसा की, और निवेदन किया कि शिवाजी पहले जागीरदारों की अपेक्षा दुगना लगान देंगे। इसके बाद उन्होंने तोरण से कोई पांच मील दूर पूर्व में पहाड़ी की एक चोटी पर राजगढ़ नाम का एक नया किला बनवाया और उसे अपना कन्द्रस्थान निश्चित किया। कुछ दिन बाद उन्होंने वीजापुर का कोण्डाना किला भी कब्जे में कर लिया और शाहजी की पश्चिमी जागीर के उन सभी भागों को अपने अधिकार में कर लिया जिनकी देखभाल दादाजी कोंगदेव करते थे । जब शिवाजी की इन हरकतों की सूचनाएं लगातार वीजापुर पहुंची तो वहाँ से शिवाजी के नाम इस प्रकार के परवाने जारी किए गए कि वह अपनी हरकतों से बाज आए। परन्तु शिवाजी ने उनकी कोई परवाह नहीं की, न कोई जवाब दिया । तब शाह ने कर्नाटक में शाहजी को लिखा कि वह अपने लड़के को समझाए । परन्तु उन्होंने साफ जवाव दे दिया कि शिवाजी ने मेरी सम्मति के बिना ही यह काम किया है। पर मैं और मेरे सब सम्बन्धी भी दरबार के शुभचिन्तक हैं। और शिवाजी भी जो कुछ कर रहा है, वह जागीर की उन्नति के लिए ही है। शाहजी ने शिवाजी को भी खत लिखा कि ऐसी कार्यवाहियों से वाज आए। पर शिवाजी के हृदय में जो आग दहक रही थी, उसे वे क्या जानते थे। उन्होंने मालगुजारी का हिसाब भी मांगा, क्योंकि अब सव रियासत की देखभाल शिवाजी ही करते थे, परन्तु शिवाजी ने लिख दिया कि इलाका निर्धन है और उसकी आय खर्च के लिए ही काफी नहीं है। बचत की कोई गुंजाइश नहीं है । इस समय जागीर में दो आदमी शिवाजी के विरोधी थे, एक तो था चाकरण का किलेदार-दूसरा शिवाजी का सौतेला मामा था जो सोमा जिले का जिलेदार था। चाकरण के किलेदार को तो आसानी से शिवाजी ने आधीन कर लिया, पर दूसरे को
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