कैद करना पड़ा । अब शिवाजी ने सिंहगढ़, कर्णाटक और पुरन्दर के किले भी अपने आधीन कर लिए । बीजापुर का शाह इस समय रोगशय्या पर पड़ा-पड़ा महल और मकबरे वनवा रहा था, और सेनापति शाहजी कर्णाटक की लड़ाइयों में दौड़धूप कर रहे थे निरन्तर शिवाजी की इन विजयों से विचलित होकर आदिलशाह क्रुद्ध हो गया और उसने एक बड़ी सेना शिवाजी के विरुद्ध भेजने का इरादा किया । पर दरवार में शाहजी के मित्र भी थे, उन्होंने उसे सम- झाया कि शिवाजी की यह हलचल रियासत के लिए लाभदायक है। इससे राज्य की दक्षिणी सीमाएं सुरक्षित और दृढ़ होती हैं। शिवाजी की हरकतें जारी रहीं। उन्होंने कोलाबा पर आक्रमण करके वहां के मरदारों को मिला लिया ।परन्तु जब उन्होंने आगे बढ़कर कल्याण दुर्ग भी अधिकृत कर लिया, तब तो आदिलगाह एकदम आपे से बाहर हो गया। उसने शिवाजी को दण्ड देने को एक बड़ी सेना भेजी। गुरु और शिष्य पूना से पश्चिम की ओर, सह्याद्रि शृङ्ग के एक दुरुह शिखर पर एक अति प्राचीन, शायद बौद्धकालीन, गुफा है। उसके निकट घने वृक्षों का झुरमुट है। अमृत के समान मीठे पानी का एक झरना भी है। इसी गुफा के सम्मुख, कोई एक तीर के अंतर पर, एक विस्तृत मैदान है । उसे खास तौर पर साफ और समतल बनाया गया है । वहां एक बलिष्ठ युवक बा फेंकने का अभ्यास कर रहा था । युवक गोर-वर्ण, सुन्दर, ठिंगना और लोहे के समान ठोस था। उसने अपने सुगठित हाथों में वज़ उठाया, और तौल कर एक वृक्ष को लक्ष्य करके फेंका । वा वृक्ष को चीरता हुआ पार निकल गया। गंभीर स्वर में किसी ने कहा-"ठीक नहीं हुआ, तुम्हारा लक्ष्य चलित हो गया ।"
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