पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/४१

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लेकिन आदिलशाह ने एक न सुनी। दह क्रोध से अन्धा हो रहा था। उसने हुक्म दिया कि शाहजी को एक अन्धे कुए में डाल दिया जाय । और एक सूराख को छोड़ कर उसका मुंह भी चिन दिया जाय । शिवाजी यदि अव भी अपनी हरकतें बन्द न करेगा तो वह सूराख भी वन्द कर दिया जायगा और नाहजी को जिन्दा दफन कर दिया जायगा। यह समाचार शिवाजी को मिला तो उन्हें बड़ी चिन्ता हुई । एक तरफ पिता के प्राणों की रक्षा थी और दूसरी तरफ स्वतन्त्रता की वरसों की कम ई थी जिस पर अव फल आने वाला था। परन्तु शिवाजी की बुद्धि कठिनाई में बहुत काम करती थी। उन्होंने अपने मुत्सद्दियों से सोच-विचार करके शाहजहां से सम्पर्क स्थापित किया। उन्होंने अपने मन्त्री रघुनाथ पन्त को औरणावाद शाहजादा मुराद की सेवा में प्रस्ताव लेकर भेजा। रघुनाथ पन्न ने मंक्षेप मे अपना अभिप्राय कह सुनाया तथा शाहजी के छुटकारे की प्रार्थना की। मुराद राजनीति में अदूरदर्शी और कमअक्ल आदमी था। इम समय औरङ्गजेब कावुल और मुलतान का सूबेदार था और मुरादवा दक्षिण का। वादशाह शाहजहां पर इस समय फारस का वड़ा दवाब पड़ रहा था। फारस के शाह अब्वाम ने एक बड़ी सेना लेकर कन्धार पर आक्रमरस किया हुआ था और औरङ्गजेब की करारी हार हो रही थी। इमलिए वादमाह का सारा ध्यान उपर ही लगा हुआ था। शाही खजाने का बारह करोड़ रुपया इस मुहिम में खर्च हो चुका था। शिवाजी के दूत रघुनाथ पन्त ने औरणावाद आकर मुरादवख्श की चौखट चूमी । सव हाल सुनकर मुराद ने तनिक भी गम्भीरता प्रकट न की। उसने कहा-“यह शाहजी नाम तो किसी हिन्दू का अजीबो- गरीब है।"