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पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/४३

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निजामशाही को बचाने की जी-जान से कोशिश करते रहे। अब शिवाजी जो कुछ कर रहे हैं, डंके की चोट कर रहे हैं। उनसे कुछ न कहकर अपने वफादार शाहजी को महज शक पर कैद रखना कहां तक इन्साफ समझा जा सकता है। उन्हें अन्धे कुए में डाला जा चुका है और अब हुजूर की नजर नेक न हुई तो ऐसा एक बहादुर कुत्ते की मौत मर जायगा जो बहादुर, दयानतदार और जांनिसार खादिमों का सरताज है।" "खैर, तो यदि हमारी सरकार उसे कुछ इमदाद फरमाए तो वह सल्तनत का क्या फायदा करेगा ?" "साहिवे आलम, शाहजी राजे कर्नाटक के बादशाह हैं। कोई माई का लाल उनका मुकाबिला करने वाला दक्षिण में नहीं है। अब अगर हुजूर की मदद से वह आजाद हो जाएँ तो सल्तनत बीजापुर हुजूर के कदमों में आ गिरेगी। मेरे मालिक शिवाजी ने अकेले ही अपना राज्य खड़ा किया है। अब अगर सल्तनत मुगलिया का सहारा होगा तो बस बीजापुर शहंशाहे मुगलिया का एक सूबा बना बनाया है।" मुराद पर रघुनाथ पन्त की बातों का गहरा प्रभाव पड़ा । शाह- जहाँ बहुत दिन से दक्षिण में पांव फैलाना चाहता था। उसने शिवाजी की प्रार्थना स्वीकार कर ली। मुरादबख्श ने शाहजी राजा के नाम पर- वाना शाही जारी कर दिया कि वे सल्तनत मुगलिया के सरदार मुकरिर फरमाए गए हैं तथा उनके वेटे शम्भाजी को पंज हजारी का मनसब। अता किया जाता है। यह परवाना पहुंचते ही बीजापुर को झख मारकर शाहजी को छोड़ देना पड़ा। साथ ही शाहजी के पास सीधा एक शाही रुक्का पहुंचा कि तुम्हारे सब कुसूर माफ किए गए और तुम्हें हमारे हुजूर में गुलाम खास का रुतबा दिया गया है। बस, तुम हमारी ओर से बीजापुर दरवार में ही अभी रहो। ४१