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पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/४४

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१७ जावली विजय सतारा जिले के उत्तर पश्चिमी कोने के बिलकुल छोर पर जावली नाम का एक गांव था, जो उन दिनों एक बड़े राज्य का केन्द्र था। उस राज्य का स्वामी चन्द्रराव मोरे एक मराठा सरदार था, और उसके अधीन कोई १२०० पैदल सिपाही थे-जो वीर पहाड़ी जाति के थे। अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण यह राज्य दक्षिण और दक्षिण- पश्चिम की दिशा में शिवाजी की महत्वाकांक्षा में एक वाधा थी। शाहजी के मामले से अली आदिलशाह भीतर-ही-भीतर घुट कर रह गया। अब वह न शिवाजी का कुछ विगाड़ सकता था, न शाहजी का। परन्तु वह शिवाजी से अब और भी चौकन्ना हो गया और वह उन्हें गिरफ्तार करने या मरवा डालने का षड्यन्त्र रचने लगा। शिवाजी को जीता या मरा लाकर शाह के हुजूर में पेश करने का बीड़ा एक मराठा सरदार ने उठाया। इस सरदार का नाम बाजी शामराव था। वह छद्मदेश में अपने आदमियों के साथ शिवाजी की घात में रहने लगा। परन्तु शिवाजी को उसकी खवर लग गई और उन्होंने उस पर आक्रमण कर दिया। पर वह वचकर जंगलों में भाग निकला। जावली के राजा चन्द्रराव ने उसे भाग जाने में मदद दी। जावली का राजा अत्यन्त चापलूस, स्वार्थी और नीचाशय था। वह गुप्त रूप में वाजी शामराव के षड्यन्त्र में भी सम्मिलित था । चन्द्रराव मोरे अपने को उच्चवंशज और भोंसले को नीच समझता था। वह आदिलशाह का सामन्त भी था। अत: उसे प्रसन्न करने के विचार से ही उसने शामराव को मदद की थी। अब शिवाजी स्वयं जावली जा धमके। उन्होंने चन्द्रराव के सामने दो शर्ते रखीं या तो लड़ो या आधीनता स्वीकार करो। शिवाजी ४२