ने अपने ताबेदार राघोवल्लाल अत्रे व शम्भाजी कावजी, नामक दूत उसके पास भेजे, पर उसने दूतों का अपमान किया। बात-ही-बात में बात बढ़ गई और राघो ने अकस्मात् ही चन्द्रराव के कलेजे में कटार घोंप दी; चन्द्रराव मारा गया। इस प्रकार अचानक चन्द्रराव के मारे जाने से तहलका मच गया और जबतक जावली के सिपाही तैयार हों, संकेत पाकर शिवाजी बाज की भांति टूट पड़े और हः घण्टे की कठिन मारकाट के बाद जावली पर शिवाजी का अधिकार हो गया। मोरे- वंश का चिरकाल से संचित खजाना शिवाजी के हाथ लगा । जिससे उन्होंने प्रतापगढ़ का नया प्रसिद्ध किला वनवाया। जावली का इलाका शिवाजी के राज्य में मिला लिया गया। अब शिवाजी ने बीजापुर दरबार के कपट का भी जवाव दिया। कोंकण के समुद्र तट से लगभग वीस मील दूर एक छोटा-सा द्वीप था जिसे जंजीरा कहते थे। मलिक अम्बर ने उसे अपनी समुद्री शक्ति के संगठन का केन्द्र बनाया था। पर अब वह वीजापुर के दावे था। शिवाजी के राजगढ़ से वह पाम ही था । उन्होंने इस स्थान का सामरिक महत्व समझ कर अपने सेनापति पेशवा शाम- राव नीलकण्ठ को एक बड़ी सेना देकर भेजा, पर वहां के किलेदार फतहखाँ ने उसे खदेड़ दिया। तब उन्होंने राघोबल्लाल अत्रे को वहां रवाना किया। १८ दक्षिण की राजनैतिक स्थिति सोलहवीं शताब्दी के प्रथम चरण में महान बहमनी राज्यवंश का अन्त हुआ। आदिलशाह और निजामशाह उसके उत्तराधिकारी बने। गुलवर्गा के मुलतानों द्वारा प्रारम्भ की गई इस्लामी राज्य की परम्पराओं का अहमदनगर और बीजापुर के केन्द्रों से पालन होने लगा। परन्तु सत्रहवीं शताब्दी के पहले चरण में ही निजामशाही की सदैव ४३