भी शीघ्र ही मिल गया । गोलकुण्डा का मन्त्री मीर जुमला अपने सुल- तान से बिगड़ खड़ा हुआ और उसने औरंगजेब से मिलकर कुतुबशाही का सर्वनाश करने का पड्यन्त्र रचा और उसकी सहायता से औरंगजेब ने १६५६ में गोलकुण्डा पर आक्रमण कर दिया । बड़ी सरलता से रियासत विजय हो गई और सुलतान ने एक करोड़ रुपया नकद और खिराज देकर सन्धि कर ली, तथा ईरान के बाद- शाह के बदले शाहजहां को अपना सुलतान स्वीकार कर लिया। इसी समय दस साल रोगी रहकर वीजापुर का सुलतान अली आदिलशाह मर गया । इन दस वर्षों में उसकी राज्य-व्यवस्था बहुत डांवाडोल हो गई थी। अब ज्यों ही सुलतान के मरने की खबर औरंग- जेब ने मुनी, उसने बीजापुर की ओर नजर फेरी । उसने कूटिनीति का सहारा लिया और कितने ही आदिलशाही सरदारों और अफसरों को घूस देकर अपनी ओर मिला लिया । बीदर और कल्याण के किले उसने हथिया लिए और बीजापुर को जा घेरा। शिवाजी बड़े विलक्षण राजनीतिज्ञ और कूटनीतिक पुरुष थे। वे बड़ी बारीकी से औरंगजेब की गतिविधि का अध्ययन कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने बीजापुर की सहायता करने की नीति अपनाई और औरङ्गजेब का ध्यान बीजापुर से हटाने के लिए वे बड़ी तीव्रता से मुगलों की दक्षिण-पश्चिम सीमा पर आक्रमण करने लगे। तीन हजार घुड़सवारों को लेकर मानाजी भोंसले ने नीमा नदी को पार किया और मुगलों के चमारगुण्डा ताल्लुका के गांवों को लूट लिया । इसी समय उनके दूसरे सेनानायक कासी ने रायसीन ताल्लुका के गांवों को लूट डाला और अब ये दोनों हठीले मराठा सरदार लूटपाट और मारकाट करते हुए मुगल साम्राज्य के दक्षिणी सूबेके प्रधान नगर अहमदनगर की चहार- दीवारी तक जा पहुंचे और वहां लूटमार करके सर्वत्र आतंक फैला दिया। जिस समय दक्षिण में शिवाजी के सेनानायक यह उत्पात मचा
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