कि मैं चलकर अपना सिर म्लेच्छ को झुकाऊँ और आपकी भांति देश-धर्म की ओर से अन्धा होकर मौज करूं।" "तो मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ ?" "मेरे लिए नहीं, अपने लिए भी नहीं। धर्म और अमहाय करोड़ों नर-नारियों के लिए कीजिए।" "क्या करूं?" "मुझे उपदेश दीजिए, आदेश दीजिए, कर्तव्य वताइए, पवित्र जनेऊ छूकर; क्या मैं अत्याचार के दमन में प्रवृत होऊ ?" "अोह, आप तो मुझे स्वामी से विश्वासघात करने को कहते हैं।" "ब्राह्मण का स्वामी भगवान है । वह सब मनुष्यों का शास्ता है । यह आप ब्राह्मण की भांति नहीं बोल रहे हैं। या तो ब्राह्मण की भांति मुझे आदेश दीजिए या उतारिए जनेऊ ।" "नहीं ! मैं ब्राह्मणत्व को नहीं त्याग सकता। मिर कटा सकता हूँ।" "तो मुझ शिष्य को उपदेश दीजिए, कृष्णाजी भास्कर की आंखों मे झर-झर आंसू बहने लगे। उन्होंने दोनों हाथ उठाकर कहा-"महाराज शिवाजी, गो-ब्राह्मण प्रजा और धर्म की रक्षा कीजिए । आशीर्वाद देता हूँ, आप सफल हों।" "तो अपने हाथों से मन्त्रपून करके यह तलवार मेरी कमर में बाँधिए।" भास्कर ने यन्त्रचालित की भांति मन्त्र पढ़कर तलवार शिवाजी की कमर में बांध दी । शिवाजी ने भुककर ब्राह्मण के चरण छुए। फिर कहा- “अब आप क्या करेंगे? अब भी म्लेच्छ के दास होकर मुझे अपराधी कहकर मेरा गला काटेंगे?" गुरुवर!" जनेऊ छूकर