पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/६५

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"मुझे आप जैसे नैष्टिक ब्राह्मण से यही आया थी अव कृपा कर उघर का हाल भी बता दीजिए।" "खान आपको जीता या मरा पकड़ने का बीड़ा उठाकर यहाँ आया है । और एक पिंजरा भी आपको बन्द करके लेजाने के लिए लाया है। उसके साथ ५००० खूखार सवार और ३००० फौज पैदल तथा तोपखाना है । अब वह बाई में अपना पड़ाव डाले पड़ा है।" "तो आप उसमे कहिए कि मैं वाई जाने में डरता हूँ। मैं उममे जावली में मिलूंगा । मैं दो अनुचरों सहित निश्शास्त्र आऊँगा । बान भी दो ही अनुचर साथ रवेगा जिनमें एक पात्र होंगे।" "खैर, यह प्रबन्ध में कर लूंगा। पर आपके पास तो काफी सेना है । आप उसे सम्मुख युद्ध में भी हरा सकते हैं।" "शायद खाँ साहब अच्छी गर्तों पर नन्धि करनें । काहे को व्यर्थ जानें वर्वाद की जाएँ।" "अब इसकी प्रामा खाद मे मत कीजिए।" "आगा मैं नहीं करता हूँ। केवल बात करता है।" "तो आप खाँ साहब को निमन्त्रग देने किमे भेजेंगे ?' "गोपीनाथ पन्त को।" "अच्छा तो मेरी ओर से आप निश्चिन्त रहिए।" "यह ब्राह्मण का वाक्य भला मैं भूल सकता हूँ। अब प्रार विश्राम कीजिए।" इतना कहकर शिवाजी कक्ष से बाहर निकल आए, कृष्णजी बड़ी देर तक विचारों की उधेड़-बुन में लगे रहे ।