पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२४ अफजल की आशा 3 कृष्णाजी भास्कर ने लौटकर अफजल को विश्वास दिलाया कि शिवाजी बहुत डर गया है और वह हमारी ही शर्तों पर आत्म-समर्पण करने को राजी है। अब आप ऐसी चतुराई से उसे पकड़िए कि उसे तनिक भी शक न हो। वह बड़ा ही चालाक आदमी है। जरा भी शक हुआ तो उसकी गर्द भी न मिलेगी।" "बस, तो मैं इतना ही चाहता हूँ कि वह पहाड़ी चूहा मेरे पिंजरे में प्रा फसे।" "यह काम तो कल हुआ ही रखा है।" "लेकिन तुम कहते हो, वह वाई आना नहीं चाहता।" "वह वहुत डर गया है हुजूर, मेरा खयाल है हमें इस पर जिद न करनी चाहिए-कहीं ऐसा न हो, वह शक करे और भाग जाय।" "वह भाग जायगा तो मैं उसके एक-एक किले को जमींदोज कर दूंगा।" "इससे कुछ फायदा नहीं होगा खाँ साहब, वह हवाई आदमी है। पीठ फेरते ही फिर शैतानी करेगा।" "खैर, तो तुम्हारी राय है कि मैं उसकी राय मान लूं।" "मुझे तो कोई हर्ज नजर नहीं आता । उसका कहना है कि दोनों अपनी-अपनी जगह से आगे बढ़कर वीच में मिलें।" "लेकिन कहाँ ?" “प्रतापगढ़ और बाई के बीच में पाटगाँव है। गाँव वह अपना ही है । मैंने कहा है कि वही जगह ठीक रहेगी। वहाँ एक ऊँचा मैदान ६४