+ है। वहीं आपका दरवार हो जायगा। हमारी फौजें एक तीर के फासले पर पास ही छिपी रहेंगी। जरूरत होते ही वे टूट पड़ेंगी।" "अोह, इस अकेले पहाड़ी चूहे के लिए तो मेरी यह तलवार ही काफी है । उसकी मुझे क्या परवाह !" "अच्छा तो दो प्रादमी हमारे पास कौन रहेंगे ?" "एक मैं आपका मेवक, दूसरा मैयद वन्दा जिसकी तलवार की बरादरी दकन में कोई कर सकता है तो हुदूर ही हैं।" "तलवार का जौहर तो तुम्हारा भी कम नहीं है, कृष्णाजी ! अव कल उसकी वानगी देखी जायगी।" "उसकी जरूरत ही नहीं पड़ेगी, हुजूर ! काम यों ही चुटकियों में हो जायगा। मैंने उमड़ी सत्र गर्ने मंजूर करके एक गर्न उससे मंजूर कराली है कि वह खुद बिना हथियार आएगा और उसके साथ जो दो आदनी रहेंगे, उनके पास तलवारें तो होंगी पर वे दम गज के फासले पर रहेंगे।" "उम्दा तजवीज है। इन्मा अल्ला, आला काम फतह होगा।" उन्होंने शिवाजी के दून गोपीनाथ को स्वीकृति देकर दापस भेज दिया । २५ शिवाजी की तैयारी जावली के चन्द्रराव मोरे के पात पीढ़ियों का संचित धन था । वह सब जावली के पतन के बाद शिवाजी के हाथ लगा। उस धन से उन्होंने प्रतापगढ़ नाम का दुर्ग बनवाया था। इस दुर्ग का सैनिक महत्व बहुत था। दक्षिण के एकदम सिरे पर यह दुर्ग एक महान् मंडल को सुरक्षित रखता था,और पश्चिम में दरह पार के ऊपर दक्षिण से कोंकण स. च.५
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