पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/७०

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"लेकिन तुम्हारा वह गंवार मालिक कहां ?" "हुक्म हो तो मैं आगे जाकर उन्हें हुजूर में ले आऊं ।" "जरूर जाओ।" कहकर खान ऊंची मसनद पर बैठ गया। थोड़ी ही देर में शिवाजी अपने दोनों सेवकों सहित वहां जा पहुंचे। पर शिवाजी ने खान के पास सैयद बंदा को नंगी तलवार लिए खड़ा देखा तो वे वहीं ठिठक कर खड़े रह गए और कहला भेजा कि उस आदमी से मुझे बहुत खौफ लग रहा है । मेरी हिम्मत आगे बढ़ने की नहीं होती। खान को शिवाजी की दुवली-पतली वदसूरत-सी शक्ल और यह बुजदिली देखकर हंसी आ गई। उसने उन्हें विना हथियार खाली हाथ देखकर कहा-"उससे कहो, वेखौफ चला पाए।" लेकिन शिवाजी आगे नहीं बढ़े । तब खान ने सैयद को जरा दूर खड़ा कर दिया । शिवाजी ने मंच पर ऊपर चढ़कर सहमते हुए खान को सलाम किया । खान' खड़ा हो गया और दोनों हाथ फैलाकर शिवाजी को गले लगाने को आगे बढ़ा। शिवाजी का सिर मुश्किल से उसके कन्धों तक पाया। खान ने शिवाजी की गर्दन अपने बाएं हाथ से दबा कर दाहिने से खंजर निकाल उनकी बगल में घोंप दिया। पलक मारते यह काम हो गया। शिवाजी की गर्दन इतने जोर से उसने दबोच रखी थी कि उनका दम घुटने लगा। खंजर जिरहवस्तर में लगकर खसक गया। दोनों पक्षों के वीरों के हाथ बलबार की मूठों पर गए । इसी समय खान जोर से चीख उठा। शिवाजी के बाएं हाथ के बघनखे ने खान का समूचा पेट चीर डाला था और उसकी प्रांतें बाहर निकल आई थीं। उसकी पकड़ भी ढीली पड़ गई। उसने तलवार निकालनी चाही, पर इसी समय शिवाजी ने उछल कर समूचा विछुआ उसके कलेजे में घोंप दिया। खान जमीन पर गिर कर छटपटाने लगा और "मार डाला काफिर ने, पकड़ लो" चिल्लाने लगा। इसी समय सैयद की तलवार का करारा वार शिवाजी के सिर पर पड़ा।