पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/७१

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वार से उनका फोलादी झिलमिल टोप कट गया और थोड़ी चोट भी आई । इसी ममय जीवाजी महला ने उछलकर सैयद का ननवार वाला हाथ काट डाला । कटा हाय तलवार सहित दूर जा गिरा। नैयद चौख कर जीवाजी पर झाटा । इसी बीच जीवाजी ने उसका मिर भुट्टा-सा उड़ा दिया । कृष्णजी भास्कर तलवार लेकर गज वेग से चिल्लाते हुए आगे बढ़े। अब शिवाजी ने लपक कर सैयद की तलवार उठा ली और कहा-"जाओ, पिता की आज्ञा से ब्राह्मण वध नहीं करूंगा।" उधर खान को पालकी में डालकर पालकी वाले भाग चले । इस पर शम्भूजी कावजी ने तलवार के वार उनकी टांगों पर किए । पालकी वाले चीखते- चिल्लाते पालकी छोड़ भाग चले। शम्भूजी ने खान का सिर तत्काल काट कर शिवाजी के सम्मुख उपस्थित किया। इसी समय जीवाजी महला ने शंख फूंक दिया । शंख फूंकते ही इशारा पाकर प्रतापगढ़ से तोर गरज उठी। फिर क्या था। आसपास की झाड़ियों-जंगलों से निकल कर हजारों मावली दुश्मनों पर टूट पड़े। अफजलखां की सेना को असल बात का उस समय तक पता नहीं लगा, जबतक किले से तोप नहीं छूटी। अब वे निकलकर बढ़े तो गाजर-मूली की भांति काट डाले गए। अफजलखां मारा गया। उसके दो लड़के, एक मुसलमान सर- दार, दो मराठा सरदार, ६० हाथी, ४ हजार घोड़े, १२०० ऊंट, वहुत-से कपड़े की गाँठ और १० लाख रुपया नकद शिवाजी के हाथ आया। शिवाजी विजय-वैजयन्ती फहराते, नगाड़े बजाते किले में लौटे । आगे-आगे भाले पर खान का कटा हुआ सिर था । दूसरे दिन दरबार हुआ । उत्सव मनाए गए। खिलअतें. बांटी गई । दुश्मन के सेनापति और सिपाहियों को राह खर्च देकर बिदा किया गया। शत्रु की औरतें और ब्राह्मण आदरपूर्वक बिदा हुए। वीर ६६