मराठाओं को इनाम बाँटे गए। जो मारे गए, उनके परिवारों को पेन्शने मिलीं। लूटे हुए हाथी-घोड़े आदि सेनापतियों में बांटे गए। दिग्दिगन्त में यह घटना वायु-वेग से फैल गई। मुगल बाद- शाह गाजी आलमगीर का कलेजा भी कांप गया । २७ शिवाजी का रण-पाण्डित्य अफजलखां के मारे जाने की खबर से बीजापुर में मातम छा गया। बड़ी साहिबा ने कई दिन तक खाना भी नहीं खाया। दरबार में शोक मनाया गया। छोटे-बड़े सभी आतंक से थर्रा उठे। इस घटना से कुछ दिन पूर्व ही बीजापुर का वजीर आजमखाँ मारा गया था, और उसी प्रकार उसका पुत्र खवासखाँ भी कत्ल किया गया था । यह एक प्रकार की परम्परा-सी पड़ गई और अब यह चर्चा होने लगी कि देखें अब क्या होने वाला है । शिवाजी के सम्बन्ध में भाँति-भांति की चर्चाएँ होने लगी और अब दक्षिरण से उत्तर तक शिवाजी-ही-शिवाजी लोगों की जिह्वा पर खेलने लगे । शिवाजी के विक्रम के साथ चातुर्य और साहस ने मिलकर हिन्दुओं की विग्रह-पद्धति में एक आमूल क्रान्ति करदी थी। अबतक केवल राजपूत ही मुसलमानों से टक्कर लेते थे। दूसरे यदि किसी ने सिर उठाया भी था तो उसे विद्रोह ही कहा जाता था। केवल राजपूतों के प्रतिरोध को युद्ध की संज्ञा दी जाती थी। राजपूत डटकर सम्मुख युद्ध करते थे। किन्तु उनमें संगठन-चातुर्य, कूटनीति और रण-कौशल नहीं था, न सेनापतित्व ही गा । केवल शौर्य-ही-शौर्य था । वे जब लड़ते थे, हार कर पीछे लौटना अपमानजनक समझते थे । युद्धक्षेत्र में ही कट ७०
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