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पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/७७

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ने सिद्दी जौहर को कैद करने बहलोलखां को भेजा और शिवाजी से निबटने को स्वयं एक बड़ी भारी सेना लेकर निकला। उसने पन्हाला और दुमरे दुर्ग अधिकृत कर लिए परनु मिट्टी जौहर शिवाजी मे शह पाकर कर्नाटक भाग गया और वहां उसने विद्रोह का झंडा खड़ा कर दिया। इसी समय वरसात शुरू हो गई। अतः उमे शिवाजी को परास्त करने का विचार छोड़ तेजी से वीजापुर लौटना पड़ा। अब उसने निरुपाय हो शाहजी को ही अपना संधित बनाकर गिवाजी के पास भेजा। बड़ा विचित्र संयोग था। पुत्र के पास पिता शत्रु का संघिदुत वनकर आया था। पिता-पुत्र की यह प्रथम भेंट थी। आज तक शाहजी ने पुत्र का मुख नहीं देखा था। जंजुरी की छावनी में भिवाजी ने पिता का स्वागत किया । शाहजी के साथ उनकी दूसरी पत्नी तुकोबाई और उनका पुत्र व्यंकोजी भी था। सब लोग एक तम्बू में घी से भरे कामे के एक बहुत बड़े थाल के इर्द-गिर्द वैठे थे। सभी के मुख पर वस्त्र का पर्दा पड़ा था। पहले सब ने एक-दूसरे के मुख की परछाईं घृत में देखी, फिर शिवाजी ने उठकर पिता और विमाता के चरण हुए । तब व्यंकोजी और तुकोबाई ने उठकर जीजाबाई के चरणों में प्रणाम किया। शाहजी ने कहा-"आज मेरा बड़ा भाग्य है कि १६ बरस बाद पुत्र का मुख और साध्वी जीजावाई का मुख देख रहा हूँ।" "मैं आपका अपराधी हूँ। मैंने आपकी आज्ञाओं का वारंवार उल्लंघन किया । बीजापुर से युद्ध करता रहा और आपको प्राण-संकट का सामना करना पड़ा । अब मैं बद्धांजलि आपकी शरण हूँ।" शिवाजी ने पिता के चरणों में सिर झुका दिया । शाहजी ने उन्हें उठाकर छाती से लगाकर कहा-"पुत्र, तुमने हमारे कुल में नया शाका चलाया, तुम-सा पाकर मैं इस लोक और ७५