कठिनाई नहीं हुई । क्योंकि उनसे पहले ही महाराष्ट्र में समान भाषा, समान धर्म और समान जीवन के आधार पर एक मुगठित जाति का निर्माण हो चुका था। शिवाजी की सेना में मराठा और कुनवी जाति के लोगों की अधिकता थी। ये जातियां निष्कपट, स्वावलम्बी, परिश्रमी और वीर थीं। ३ शाहजी भोंसले चौदहवीं शताब्दी में जब मुसलमानों ने दक्षिण को जीता और महाराष्ट्र के अन्तिम हिन्दू राज्य का भी अन्त हो गया, तब यहां की योद्धा जातियों के छोटे-छोटे दल भिन्न नायकों के दल में संगठित हो गए, जिन्हें नए मुसलमान शासक धन देकर अपनी सहायता के लिए बुलाते रहे, और उनका सहयोग लेते रहे। इस तरह मुसलमानी राज्यों के सहयोग से कुछ मराठा घराने धन और शक्ति से सम्पन्न बन गए। ऐसा ही एक घराना मोंसले का था जो पूना प्रान्त के अन्तर्गत पाटस ताल्लुके में रहता था और वहां के दो गांवों की पटेली भी करता था। आरम्भ में यह घराना खेती करके निर्वाह करता रहा । इसी घराने में एक पुरुष हुए, जिनका नाम मल्लूजी था। वे देशल ग्राम में रहते थे। परन्तु उनका विवाह एक ऐसे प्रतिष्ठित वंश में हुआ था जो धनवान भी था और प्राचीन भी। इस समय निजामशाही में सबसे प्रमुख मराठा घराना सामन्त लखूजी जादोराय का था। जादोराय निजामशाही में १० हजार के जागीरदार ये। उनके वंश में सदा से देशमुखी चली आती थी। मल्लूजी की ससुराल वालों का घराना दूसरे नम्बर पर था। परन्तु मल्लूजी का साला अपने समय का बड़ा नामी लड़ाका और वीर था। उसका नाम जयपाल था। वह सदा लड़ाइयाँ तथा लूटमार करता रहता था । मल्लूजी भोंसले का बड़ा पुत्र शाहजी था। शाहजी का ब्याह ६
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