जादोराय की कन्या जीजावाई से हुआ। जादोराय और मल्लूजी पुराने मित्र थे। एक बार वे अपने पुत्र शाहजी को संग लेकर जादोराय के घर गए । तब वालिका जीजाबाई आकर शाहजी के पास बैठ गई। जादोराय ने हंसकर कहा-"अच्छी जोड़ी है"। उसने लड़की से पूछा-"क्या तू शाहजी से व्याह करेगी ?" यह सुनते ही मल्लूजी उछलकर खड़ा हो गया और कहा-"देखो भई, सबके सामने जादोराय ने आज अपनी कन्या का वाग्दान मेरे पुत्र शाहजी के साथ कर दिया है। अब जीजाबाई शाहजी की हुई ।” परन्तु जादोराय विगड़ गया, और इसी बात पर दोनों में अनबन भी हो गई। बाद में मल्लूजी को खेतों में गढ़ा हुआ कुछ धन प्राप्त हो गया, जिससे उन्होंने कुछ घोड़े और हथियार खरीद लिए और निजामशाही की एक सेना के सेनानायक बन गए। उन्हें पांचहजारी का मनसब भी मिल गया। बाद में अहमद- नगर के दरबारियों ने बीच में पड़कर जादोराय से उनका मेल करा दिया और अन्त में जीजाबाई का व्याह भी शाहजी से हो गया । मल्लूजी के मरने पर शाहजी को अहमदनगर के दरवार से अपने पिता के अधिकार और जागीर मिली। शाहजी बड़े हौसले के आदमी थे। शीघ्र ही लोगों ने देखा कि बेटा वाप से बढ़-चढ़ कर है । यह वह समय था जब वादशाह जहांगीर के सेनापति दक्षिण विजय करने की धुन में थे। और अहमदनगर के प्रसिद्ध सेनापति वजीर मलिक अम्बर उनसे लड़ रहा था। मलिक अम्बर अबीसीनिया का निवासी था। अपनी योग्यता से वह अहमदनगर की निजामशाही सेना का सेनापति व प्रधान वजीर बन गया था। वह बहुत अच्छा प्रबन्धक और मालमन्त्री तथा उच्चकोटि का सेनानायक था। उसने मराठों की सेना संगठित कर उन्हें गुरिल्ला युद्ध की शिक्षा दे सैन्य संचालन में आश्चर्यजनक उन्नति की थी। जहाँगीर ने अब्दुररहीम खानखाना को उसे परास्त करने भेजा था, पर उन्हें हार कर भागना पड़ा । तब उसने शाहजादा परवेज को ७