पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/८२

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उनके पीछे थे उनके ४०० मावला वीर और उनकी नङ्गी तलवारें। शिवाजी एकदम खान के शयनागार में जा धमके । औरतें भयभीत होकर चीख पड़ीं। हड़बड़ा कर शाइस्ताखां उठा और वह इतना घबरा गया कि दुमहले से नीचे कूद पड़ा । शिवाजी उसकी ओर झपटे किन्तु तलवार के आघात से उसका एक अंगूठा ही कटा। इसी समय किसी ने सव दीपक बुझा दिए । अंधेरे में मराठे मारकाट करते रहे किन्तु दो दासियों ने जान पर खेल कर शाइस्ताखां को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया । इसी समय अन्तःपुर के फाटक पर-महल के मुख्य पहरेदारों पर, हमला कर दिया और उन्हें काट डाला। फिर वे नौबतखाने में पहुंचे और नौवत बजाने की आज्ञा दी। नौवत और नगाड़ों की इस तुमुल ध्वनि में अन्तःपुर का करुणा क्रन्दन और पहरेदारों की चीख-चिल्लाहट डूब गई और मराटों ने अपनी हुंकारों से ऐसा आतंक उत्पन्न किया कि सैनिक और अमैनिक प्राण लेकर भागने लगे। अब इस आशंका से कि कदाचित् और सेना आकर उन्हें घेर न ले, शिवानी वहां से नौ दो ग्यारह हो गए। न किसी ने उनका पीछा किया, न उन्हें कोई हानि पहुँची। इस मुहिम में कुल ६ मराठे मरे, ४० घायल हुए। उधर मराठों ने शाइस्तावां के एक पुत्र, एक सेनापति, ४० नौकर, उसकी ६ पलियों और दासियों को मार डाला तथा दो पुत्रों, आठ स्त्रियों और शाइस्ताखां को उन्होंने घायल किया। शाइस्ताखां इस घटना से ऐसा भयभीत हुआ कि वह दक्षिण से सीधा दिल्ली भाग चला और शिवाजी की धाक और स्थिति इतनी बढ़ गई कि मुसलमानी सेना में लोग उसे शैतान का अवतार मानने लगे और यह समझा जाने लगा कि उससे बचने के लिए न तो कोई सुरक्षित जगह है और न कोई ऐसा काम है, जिसे शिवाजी न पहुँच सकें। वादशाह इस समय काश्मीर को रवाना हो रहा था। उसने जब इस भयानक घटना का समाचार सुना तो अपनी दाढ़ी नोंच ली 1