पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/९६

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निश्चिन्त रहो, अब न महाराष्ट्र का गौरव घट सकेगा, न हिन्दुओं का स्वातन्त्र्य । मुगल राज्य अब नहीं रहेगा।" "तो हे महाराजाओं के महाराज, आप मेरे लिए पिता के समान हैं। यह तन्नबार मैं आपको अपंस करता हूँ। मैं अब युद्ध नहीं करूंगा। मैंने आपको बालममर्पण विचा।" इतना कहतर शिवाजी ने तलवार महारान जमिह के हाथों में दे दी। महाराज जसिंह ने तलवार मस्तक से लगाई, चूनी और कहा-"शिवाजी राजे, यह भवानी की पवित्र तलवार है। हिन्दू धर्म की रक्षक है । आओ, इसे मैं उपयुक्त स्थान पर अपने हाथों स्थापित करू।" वे उठ खड़े हुए। शिवाजी भी खड़े हुए। महाराज ने तलवार उनकी कमर में बांधकर उन्हें अङ्क में भर लिया और कहा-“अब दिदा शिवाजी राजे, अपने प्रधानमन्त्री रघुनाथ पन्त को भेज देना। सन्धि की शर्तों में आपका पूरा ध्यान रबूंगा।" "आप मेरे पिता हैं। मैं आरके आधीन हूँ। आप जैसा ठीक समझे वही कीजिए।" इतना कहकर प्रमाम कर मित्रानो वहां से चला कि ! मुगल और बीजापुर बीजापुर के मुलतान में औरंगजेत्र के क्रुद्ध हो जाने का एक और कारण था। जब औरंगजेब आगरे के तहत के लिए संघर्ष कर रहा था, तो उससे लाभ उठाकर आदिलशाह ने अगस्त १६५७ की सन्धि-शों का कुछ उल्लंघन किया था। जब जयसिंह ने शिवाजी पर अभियान किया तो उसे पता लगा कि बीजापुर दरवार गुप्त रूप से शिवाजी के साथ ६४