सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/१२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
अनुपम मिश्र


नोटिस आ गया। नोटिस में कहा गया था कि ये तालाब अवैध हैं, इन्हें तुरंत हटा लिया जाए वरना सिंचाई क़ानून फ़लां-फ़लां के अनुसार कड़ी कार्रवाई की जाएगी। अकाल का इलाक़ा, पानी की बेहद कमी। ऐसे में गांव की ज़मीन पर अपनी ही मेहनत से तालाब बना लेने से भला कैसे कानून टूट गया? मज़बूत तालाब बन गए थे, नाजुक क़ानून टूट गया था। कहीं ऐसा तो नहीं था कि संस्था ने बिना पूछे तालाब बनवा लिए थे? संस्था से पूछताछ की। संस्था थोड़ी स्वाभिमानी निकली। उसने बताया कि तालाब बनाने के लिए हम किसी से इजाज़त लेना पसंद नहीं करते, हां विभाग को लिखकर ज़रूर दे दिया गया था। फिर सिंचाई विभाग से पूछताछ की तो पता चला कि उसकी चिंता इन तालाबों की मज़बूती को लेकर है। इंजीनियरिंग पढ़े-लिखे सिंचाई विभाग के रहते 'गंवार और अनपढ़' लोग अपने आप तालाब बनाने लगें और कहीं वे टूट जाएं तो नुकसान की ज़िम्मेदारी किसकी होगी भला? सरकारी बात में सरकारी दम भी था और दंभ भी। संस्था से फिर पूछा कि सब कुछ सोच समझ कर, नाप-तौल कर तो बनाया है? संस्था ने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी चुप्पी से इतना ज़रूर याद आया कि लाखों तालाब तो सैकड़ों बरसों से बनते रहे हैं। सिंचाई विभाग को बने तो 200 बरस भी ठीक से नहीं हो पाए हैं।

तरुण भारत संघ की चुप्पी टूटी, बरसात के पहले झले के साथ। तार आया कि लोगों के सब तालाब लबालब भर गए हैं लेकिन सिंचाई विभाग के दो तालाब फूट गए हैं। किसी के लिए सुखद और किसी के लिए दुखद यह सूचना अलवर सिंचाई विभाग को पहुंचाई। तब से आज तक विभाग का मौन और शालीनता से लबालब भरा व्यवहार प्रशंसा योग्य ही माना जाना चाहिए। पांच बरस पहले इन्हीं दो-चार 'अवैध'

104