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पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/१६८

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थाली का बैंगन


भाषा में अगर हम किसी तरह की असावधानी दिखाते हैं तो हम व्यवहार में भी असावधानी पाते हैं। उदार शब्द हिंदी का बड़ा ही शुभ शब्द है। अगर राजनीतिक, आर्थिक व्यवस्था का उदारीकरण करना है तो 15 साल बाद उसका निरीक्षण क्यों करना? जब मन उदार बन रहा है, व्यवस्था उदार हो रही है तब हमारे मन में संशय और डर कैसा? इसका मतलब है हमने एक ग़लत उद्देश्य के लिए एक अच्छे शब्द की बलि दी है। यह दुख की बात है कि हिंदी भाषा के बुद्धिजीवी, अख़बार, साहित्यकार किसी ने समाज का ध्यान इस ओर नहीं खींचा। उदार का विपरीत अर्थ कंजूस, कृपण और झंझटी है तो क्या इसके पहले की व्यवस्था कंजूसी की थी, कृपणता की थी, संकीर्णता की थी? वह दौर किनका था? वह दौर सर्वश्रेष्ठ नेताओं का था। नेहरूजी जैसे लोगों का। अगर वह दौर कृपणता का था तो अब हम उदार हो गए हैं। हम पाते हैं आज उस दौर से कमज़ोर नेता हमारे पास हैं। यह कैसे हो सकता है कि कृपणता के दौर में अच्छे नेता थे और अब उदारीकरण के समय कमज़ोर नेता? पहले हमें इसका हल ढूंढ़ना चाहिए। फिर 15 साल कैसे बीते उस पर बग़ैर किसी कटुता के बात करनी चाहिए।