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थाली का बैंगन

हैं। यह दुखद है। हमें यह तय करना होगा कि हम एक ऐसे बाज़ार के लिए तैयार हैं, जिसमें कोई प्रमाण नहीं बचा है। इस बाज़ार की कोई दृष्टि नहीं है। यह तो केवल पैसा-डॉलर समझता है। हम कभी ऐसे बाज़ार के हिस्से हुआ करते थे जिस पर समाज व किसान का नियंत्रण था। हम आज बहुत पीछे छूट गए हैं। 15 साल के उदारीकरण से आई इन बातों की चिंता आज ज़रूरी है। इसकी चिंता बाज़ार नहीं करेगा, थाली नहीं करेगी। हम बैंगन तो चिंता करें।

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