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पर्यावरण का पाठ


आया कि जहां देश का सबसे कम पानी गिरता है-मरुभूमि-उसका वर्णन हमको अलग ढंग से करना चाहिए। तालाब वाली किताब में आप देखेंगे कि राजस्थान का वर्णन होते हुए भी कम है। फिर हमको यह भी समझ में आया कि जहां समाज में सबसे कम पानी उपलब्ध है-प्रकृति की तरफ़ से-उस समाज ने अपने को सबसे रंग-बिरंगा संगठित किया है। और उसका आकार इतना बड़ा है कि वह संगठन निराकार हो गया। कोई अध्यक्ष, मंत्री, वार्षिक बजट, जीप, गाड़ी, बंगला कहीं नहीं दिखता।

पूरे देश का जो मन है, पानी को रोकने के मामले में वह एक है। अगर हम यह कहें कि एक धागे की माला है; फूल अलग-अलग हो सकते हैं। मरुभूमि का फूल कुछ और रंग का है, उसमें चटक ख़ुशबू है, तो मध्य भारत का फूल अलग है। फूल अलग हैं लेकिन धागा एक ही है। इधर से उधर तक सिद्धांत एक है कि प्रकृति से जो पानी मिले उसको सम्मान के साथ रोक लेना चाहिए। मिट्टी बदलती है, वर्षा का आंकड़ा बदलता है। जहां बहुत तेज़ पानी गिरता है वहां छोटे आगोर से जल्दी तालाब भरा जा सकता है। जैसलमेर वगैरह में बहुत बड़े आकार का आगोर चाहिए क्योंकि पानी कम गिरता है। तो फिर उतने बड़े आगोर की रखवाली के लिए नियम दूसरे बनाने पड़े होंगे समाज को।

आपने निर्माण प्रक्रिया के बारे में भी पूछा है। सबसे पहले हमने बीकानेर में एक बगीची देखी। उसमें एक पक्का आंगन था। फिर करीब घुटने के बराबर एक दीवार थी। सीधे उसको लांघकर भी जा सकते थे लेकिन कुछ एक अड़चन थी आप ऐसे बिना रोक-टोक न जा सकें। जो कुछ भी हमारी छोटी-मोटी पढ़ाई-लिखाई हुई है उसमें हमने ये कभी अनुभव नहीं किया था कि यह क्या चीज़ हो सकती है। हम लोगों ने उनसे पूछा : उन्होंने कहा यह पानी का टांका है। टांका हमने कभी नहीं देखा था, थोड़ा अटपटा भी लगा कि हम बिल्कुल गधे हैं। उन्होंने कहा-'नहीं

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