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पर्यावरण का पाठ

5. अलग-अलग प्रांतों और प्रदेशों में बनने वाले तालाबों का वास्तु-शास्त्र वहां की प्राकृतिक और भौगोलिक संरचना पर ही आधारित होता था या समाज में उनका उपयोग व उपभोग भी उनके निर्माण को निर्धारित करता था?

6. इन तालाबों से जुड़ी कहानियां, जातक कथाएं किस तरह से संस्कृति और पर्यावरण की रक्षा में अपना योगदान देती हैं?

मोटे तौर पर समाज अपने काम को याद रखने के लिए कुछ सरल तरीक़े ढूंढ़ता है। उसमें यह मुहूर्त वग़ैरह उसी तरह की चीज़ें है। नहीं तो आपको एक आदेश निकालना पड़ेगा कि तालाब बनाने का मौसम आ गया है। सारे लोगों को कॉपी जाएगी तो कोई एकाध लाख फ़ोटोकॉपी करवानी होंगी। सरकुलर या प्रिंट करना हो तो कितने पतों पर भेजोगे, कौन भेजेगा? आधी डाक में गड़बड़ हो जाएंगी। पता चला कि पाने वाले छुट्टी पर हैं। इस तरह तो वर्षों तक तालाब ठीक नहीं होंगे, नए नहीं खुदेंगे। तो समाज जब बड़े पैमाने पर कोई चीज़ करना चाहता है तो उसको सरल बनाता है। प्रकृति भी ऐसा ही करती है। तो मुझे यह लगता है कि ग्यारस वग़ैरह इसलिए तय किए गए, दिन रखे गए। शुभ दिन का मतलब अनपूछी सबसे व्यावहारिक दिन भी है। दीपावली के 11 दिन बाद बड़ी दीपावली आती है, तुलसी विवाह वाला वह दिन है। इसका शास्त्रीय नाम है 'देवोत्थान एकादशी।' देवउठनी भी उसी तरह बना है।

यह व्यावहारिक दिन भी है। पानी का काम करने के लिए। तालाब का काम आपको करना हो तो मिट्टी ऐसी चाहिए कि उसमें कुदाल, फावड़ा चल सकता हो। कीचड़ में नहीं चल सकता। बिल्कुल सूखे में भी नहीं चल सकता। तो यह बीच का दौर है। वर्षा का पूरा मौसम निकल गया-सितंबर-अक्तूबर। आकाश नीला हो गया। बादल छंट गए। थोड़ी सी धूप भी पड़ गयी। मौसम खुल जाने से कीचड़ भी सूख गया।

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