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पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/२६८

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श्रद्धा-भाव की ज़रूरत


बहुत अच्छा लिखने वाले भी जब बोलने खड़े होते हैं तो कमज़ोर बोलते हैं। मैं तो साधारण लिखने वाला हूं। इसलिए मुझसे आप कोई अच्छे भाषण की उम्मीद न करें। मैंने लिखा भी बहुत कम है। जैसा आजकल लिखा जाता है, प्रायः हर हफ़्ते हर महीने, लोगों के नाम देखने को मिलते हैं। मैंने तो 20-25 सालों में अगर 17 छोटी-छोटी या एकाध दो बड़ी किताबें लिख दीं तो कोई बड़ा काम नहीं है। ये तो तराज़ू पर एक-दो किलो के बांट से तुलने लायक़ है। इससे ज़्यादा कुछ होगा नहीं। फिर आज जो प्रसंग है, उसके सिलसिले में भी बहुत संकोच के साथ कहना चाहूंगा कि जिन तीन विशिष्ट व्यक्तियों को ये सम्मान मिला उसमें चौथा नाम मेरा जो आप लोगों ने जोड़ा, ये चौथाई भी नहीं बैठता उनमें से। इसलिए इसको मैं ऐसा मानता हूं कि आयोजकों की, आप सबकी और चयन समिति की बहुत उदारता ही माननी चाहिए कि उन्होंने मेरे थोड़े से लिखे को सामने रखा। इसका कारण मैं समझने की कोशिश कर रहा था। बूंद भर मैंने कुछ लिखा है पर्यावरण पर, जो बिंदु बराबर है वह एक बड़े सिंधु का हिस्सा है। उस सिंधु का दर्शन इस बिंदु में ज़रूर हो सके ऐसी कुछ-न-कुछ कोशिश मैंने की थी। तो शायद आप लोगों के ध्यान में वह समुद्र वह सिंधु रहा इसलिए आपने उसकी एक बूंद को भी इतना महत्व दिया है।