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तैरने वाला समाज डूब रहा है

गया। नदी ने मनुहार स्वीकार की और अगले वर्ष वापस चली आई। ये कहानियां समाज इसलिए याद रखवाना चाहता है कि लोगों को मालूम रहे कि यहां की नदियां कवि के कहने से भी रास्ता बदल लेती हैं और साधारण लोगों के आग्रह को स्वीकार कर अपना बदला हुआ रास्ता फिर से सुधार लेती हैं। इसलिए इन नदियों के स्वभाव को ध्यान में रख कर जीवन चलाओ। ये सभी चीज़ें हम लोगों को इस तरफ़ ले जाती हैं कि जिन बातों को भूल गए हैं उन्हें फिर से याद करें।

कुछ नदियों के बहुत विचित्र नाम भी समाज ने हज़ारों साल के अनुभव से रखे थे। इनमें से एक विचित्र नाम है–अमरबेल। कहीं इसे आकाशबेल भी कहते हैं। इस नदी का उद्भव और संगम कहीं नहीं दिखाई देता है। कहां से निकलती है, किस नदी में मिलती है–ऐसी कोई पक्की जानकारी नहीं है। बरसात के दिनों में यह अचानक प्रकट होती है और जैसे पेड़ पर अमरबेल छा जाती है। वैसे ही एक बड़े इलाक़े में इसकी कई धाराएं दिखाई देती हैं। फिर ये ग़ायब भी हो जाती हैं। यह भी ज़रूरी नहीं कि वह अगले साल इन्हीं धाराओं में से बहे। तब यह अपना कोई दूसरा नया जाल खोज लेती है। एक नदी का नाम है दस्यु नदी। यह दस्यु की तरह दूसरी नदियों की 'कमाई' हुई जलराशि का, उनके वैभव का हरण कर लेती है। इसलिए पुराने साहित्य में इसका एक विशेषण वैभवहरण भी मिलता है।

फिर बिल्कुल चालू बोलियों में भी नदियों के नाम मिलते हैं। एक नदी का नाम मरने है। इसी तरह एक नदी मरगंगा है। भुतहा या भुतही का क़िस्सा तो ऊपर आ ही गया है। जहां ढेर सारी नदियां हर कभी हर कहीं से बहती हों सारे नियम तोड़ कर, वहां समाज ने एक ऐसी भी नदी खोज ली थी जो टस-से-मस नहीं होती थी। उसका नाम रखा गया–धर्ममूला।

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