पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/१०

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सर सैयद अहमद खान ने लिखा है कि 'भारत हिन्दू और मुसलमान दोनों का घर है। दोनों भारत की फिज़ा में साँस लेते हैं और पवित्र गंगा और जमुना का पानी पीते हैं। दोनों इसी धरती की उपज खाते हैं। लंबे समय से यहाँ रहने के कारण दोनों का खून बदला है, दोनों का रंग भी समान हो गया है, चेहरे भी एक ही तरह के हो गए हैं। मुसलमानों ने हिंदुओं के सैंकड़ों रीति-रिवाज सीख लिए हैं तथा हिन्दुओं ने भी मुसलमानों से सैंकड़ों चीजें सीखी हैं। दोनों का इतना मेलजोल हुआ है कि इससे एक नई जबान उर्दू का जन्म हुआ है, जो इन दोनों में से किसी की भाषा नहीं है। भारत के साझे निवासी होने से हिंदू और मुसलमान एक जाति हैं तथा देश के साथ-साथ इस दोनों की उन्नति परस्पर सहयोग, सद्भाव और प्रेम से ही संभव है । एक दूसरे के प्रति विरोध, कलह और विभेद से हम परस्पर का विनाश ही करेंगे। यह हमारा दुर्भाग्य है जो लोग इन बातों को नहीं समझते और हिंदू-मुस्लिम के बीच विभेद पैदा करते हैं, यह नहीं समझ पाते कि ऐसी स्थिति में उनका ही नुकसान होगा और वे इन बातों से स्वयं को ही आघात पहुंचा रहे हैं। दोस्तो ! मैंने बार-बार कहा है कि हिन्दुस्तान एक दुल्हन की तरह है जिसकी दो खूबसूरत चमकीली आँखें हैं— हिन्दू और मुसलमान । यदि ये दोनों आपस में लड़ाई करेंगी तो खूबसूरत दुल्हन बदशक्ल हो जाएगी और यदि एक आँख दूसरे को नष्ट कर देगी, तो दुल्हन एक आँख ही गंवा बैठेगी । हिन्दुस्तान के लोगो अब यह तुम्हारे हाथ में है कि इस दुल्हन को भैंगी बनाओ या कानी । 2 साम्प्रदायिकता दो तरह की होती है— एक को नर्म / उदार (Soft) साम्प्रदायिकता कहा जा सकता है दूसरी फासिस्ट / कट्टर साम्प्रदायिकता। नर्म/ उदार साम्प्रदायिक लोगों का मानना है कि एक धर्म या सम्प्रदाय के लोगों के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक हित विशिष्ट भी होते हैं, जिनको हासिल करने के लिए बातचीत से या दबाव से जैसे भी हो पूरा करना चाहिए लेकिन साथ ही उदार/नर्म साम्प्रदायिक यह भी मानते हैं कि विभिन्न धर्मों के लोगों के सांझे हित हैं और इस साझेपन के कारण ही वे राष्ट्र बनते हैं इसलिए उन्हें अपनी राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक विकास के संघर्ष में साथ रहना चाहिए। दूसरे सम्प्रदाय या धर्म के प्रति उदार रूख के कारण ही इसको उदार साम्प्रदायिकता कहा जाता है। जो अपने सम्प्रदाय के हितों की पूर्ति के लिए जोर रखती है और इसके लिए अन्य सम्प्रदायों या धर्मों से सौदेबाजी भी करती है । स्वतन्त्रता संघर्ष के दौरान 1936 तक हिन्दू महासभा, मुस्लिम लीग व अकाली दल के उदार साम्प्रदायिक लोग बैठकर आपस में बातें भी करते थे और अपने झगड़े सुलझाते थे व अंग्रेजी सरकार पर दबाव डालकर अपनी बात मनवाने की कोशिश भी करते थे। आज की राजनीति में उदार साम्प्रदायिक साम्प्रदायिकता / 11