पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/९

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अमीर हैं तब तक एक धर्म के लोगों के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक हित एक समान हो ही नहीं सकते बल्कि एक ही धर्म के मानने वाले गरीब और अमीर के सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक हित परस्पर विरोधी होते हैं और दूसरी तरफ अलग-अलग धर्मों को मानने वाले अमीरों के हित एक जैसे होते हैं और गरीबों के हित एक जैसे होते हैं । उदाहरण के लिए एक मजदूर हिन्दू या मुसलमान अपने ही धर्म के पूंजीपति के कारखाने में काम करते हैं उनके आर्थिक हित एक जैसे कैसे हो सकते हैं जहां पूंजीपति हमेशा अपने लाभ को बढ़ाने के लिए मजदूर की मेहनत का शोषण करने की नई-नई योजनाएं बनाता रहता है । इसके विपरीत पूंजीपति हिन्दू और पूंजीपति मुसलमान के हित एक जैसे होते हैं । गरीब हिन्दू व गरीब मुसलमान के जीवन जीने के ढंग में, रहन-सहन, शिक्षा - स्वास्थ्य, कार्य-स्थितियों में समानता होती है जबकि अमीर हिन्दू या मुसलमान की जीवन शैली, रहन-सहन, ठाठ-बाट ऐश-विलास में समानता होती है। साम्प्रदायिक शक्तियां और साम्प्रदायिकता की विचारधारा, गरीबों में एकता न होने पाए, इसलिए उनमें वर्गीय- एकता को कमजोर करने के लिए व दरार पैदा करने के लिए यह सवाल उठाते रहे हैं। यदि गरीब लोगों (जो कि इसलिए गरीब हैं क्योंकि उनकी मेहनत का फल कोई और यानी अमीर खा रहा है) को इस बात का अहसास हो जाए और उनमें एकता स्थापित हो जाए तो फिर पूंजीपति हिन्दू व मुसलमान गरीब हिन्दू व मुसलमान को लूट नहीं सकेंगे। अपने इस ठाठ - ऐश्वर्य को जारी रखने के लिए 'फूट डालो और राज करो' की नीति के तहत साम्प्रदायिकता की यह घिनौनी चाल उनके बहुत काम आती है । । साम्प्रदायिकता हमेशा इस बात पर जोर देती है कि दो धर्मों के लोग इक्ट्ठा नहीं रह सकते। इसी बात को आधार बनाकर 'द्वि-राष्ट्र' का सिद्धान्त गढ़ा गया और हिन्दुस्तान के दो टुकड़े हुए— भारत और पाकिस्तान बने, लेकिन यह सिद्धांत कितनी झूठ और कृत्रिमता पर खड़ा था । यह तब साबित हुआ जब पाकिस्तान के भी दो टुकड़े हो गए और धर्म के आधार बनने वाले राष्ट्र और 'एक धर्म एक देश' की अवधारणा का थोथापन उजागर हो गया । साम्प्रदायिकता की दृष्टि धारण किए हुए लोगों की यह बात तथ्यपरक भी नहीं है कि विभिन्न धर्मों के लोग शांति के साथ एक जगह नहीं रह सकते। भारत में ही विभिन्न धर्मों के लोग हजारों सालों तक शांतिपूर्ण ढंग से रहते आए हैं। विभिन्न धर्मों के लोग एक-दूसरे से इतने घुल-मिल गए हैं कि यह अनुमान लगाना कठिन है कि कौन सा विश्वास या रिवाज किस धर्म का है । विभिन्न धर्मों के लोगों ने खान-पान, रहन-सहन, वेश-भूषा व आचार-विचार में एक दूसरे से बहुत कुछ सीखा है। आधुनिक चिन्तक व समाज सुधारक 10 / साम्प्रदायिकता