पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/१०४

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परिशिष्ट रामधारी सिंह दिनकर रामधारी सिंह दिनकर ऐसे कवि हुए हैं जिन्होंने भारतीय संस्कृति को गहराई से समझा। उन्होंने अपने विचारों को 'संस्कृति के चार अध्याय' नामक पुस्तक में प्रस्तुत किया है । यह पुस्तक 'लोक भारती प्रकाशन, इलाहाबाद' से प्रकाशित हुई है। इसके 1994 के संस्करण से 471 से 477 पृष्ठों को यहां प्रस्तुत किया जा रहा है। हिन्दुओं के बीच अन्धविश्वास और रूढ़ियां बहुत अधिक प्रचलित थीं। इनके प्रभाव से मुस्लिम समाज में भी कुछ रूढ़ियां उत्पन्न हो गईं और हिन्दुओं की देखा देखी मुसलमान जनता भी गाजी मियां, पांच पीर, पीर बदर, ख्वाजा खिजिर आदि कल्पित देवताओं की पूजा करने लगी। मुसलमानों के ये पीर, अक्सर ग्राम-देवता बन बैठे और हिन्दू-मुस्लिम, सब दरगाह पर माथा टेकने लगे। दशहरा और रथ यात्रा - उत्सवों के अनुकरण पर मुहर्रम में ताजिये निकाले जाने लगे एवं ताजियों में हिन्दू और मुसलमान, बिना किसी भेदभाव के सम्मिलित होने लगे। ताजियों के पीछे चूंकि हजरत अली के बेटे हजरत इमाम हुसैन की याद थी और हजरत अली बल के आगार थे, इसलिए ताजियों की संरक्षकता गावों के नामी पहलवान करते थे जिनमें बहुधा हिन्दू पहलवानों की भी गिनती होती थी । अखाड़ों में जैसे हिन्दू ‘जय महावीर' का नारा लगाते थे, वैसे ही, ताजियों के जुलूसों में सभी हिन्दू उल्लास के साथ 'या अली' पुकारते थे । हिन्दू, मुसलमान का छुआ हुआ नहीं खाते थे, फिर भी, दोनों जातियों का सामाजिक रिश्ता मजबूत होने लगा और एक घर से दूसरे घर में मिठाइयों के उपहार भी भेजे जाने लगे । हिन्दुओं के बहुत से रिवाज ऊंचे तबकों के मुसलमानों में, आप से आप, चल पड़े। नजर से बचने के लिए न्योछावर उतारने की परिपाटी बादशाहों की हवेलियों में थी। शहजादे भी यात्रा पर निकलने से पहले बांहों पर मंत्र-सिद्ध यंत्र बंधवाते थे। मुहम्मद तुगलक लड़ाइयों पर जाने से पहले हिन्दू योगियों से आशीर्वाद मांगा करता था। बहुत से शेख और मुस्लिम परिशिष्ट / 105