पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/१०५

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पीर, हिन्दू-मठों की नकल पर, गद्दियां भी स्थापित करते थे। कहते हैं, राजपूतों की देखा-देखी कुछ मुसलमानों ने भी जौहर की प्रथा अपना ली थी। भटनेर के सूबेदार कमालुद्दीन ने, तैमूर से लड़ने जाने से पहले, अपने फौजियों की पत्नियों को आग में कूद जाने का आदेश दिया था। जहांगीर जब काश्मीर गया, तब वहां उसने कुछ ऐसे मुस्लिम राजे भी देखे, जो सती प्रथा को मानते थे तथा जिनका शादी-विवाह हिन्दू- घरानों से होता था । - छत्र-चंवर, हीरे-मोती, जड़ाऊ खड्ग, कीमती राजसी पोशाक और सजे हुए हाथी और घोड़े, ये विशेषताएं हिन्दू राज-दरबारों की थी। इस्लाम की परम्परा सादगी और मितव्यवता की थी। किन्तु, मुसलमान जब भारत पर राज करने लगे, तब उन्होंने भी इन आडम्बरों को अपना लिया; केवल अपना ही नहीं लिया (उनमें कई इजाफे भी कर दिये । इसी प्रकार, पान खाने की आदत मुसलमानों ने हिन्दुओं से ली थी, लेकिन, पीछे चलकर पान चबाने में उन्होंने हिन्दुओं को भी मात दे दी।) कहते हैं, 14वीं सदी में पान खाने का रिवाज हिजाज और यमन तक फैल गया था । फलों से अचार तैयार करने की प्रथा भारत की थी । वह मुसलमानों के यहां चल पड़ी। भारत के मोहन भोग का प्रभाव पुलाव पर पड़ा। भारतीय मुसलमानों का पुलाव और कोरमा वही नहीं रहा जो इरीन और खुरासान में था। चीरा और पाग मुसलमानों ने हिन्दुस्तानियों से लिया और बदले में कसे- चुस्त पायजामे राजपूतनियों ने मुस्लिम नारियों से लिए । इस्लाम की परम्परा रेशम, मलमल और कीमती जेवरों के विरुद्ध थी, लेकिन भारत में बस जाने पर मुसलमानों ने भी इन्हें अपना लिया । हिन्दुस्तान समृद्ध देश है, उसके तौर तरीके और सामाजिक आचार आकर्षक हैं, ये बातें भारत के बाहर भी खूब प्रचलित थीं। अतएव, जब मुसलमान हिन्दुस्तान आए, वे बड़ी ही शीघ्रता के साथ यहां के तौर तरीके सीखने लगे। इब्नबतूता ने अपनी किताब में सुल्तान मुहम्मद तुगलक की बेटी के विवाह का जो वर्णन लिखा है उससे मालूम होता है कि मुसलमानों पर हिन्दू- प्रभाव उस समय भी काफी पड़ चुका था। रमल फेंककर सगुन विचारने की प्रथा अरब में भी थी, किन्तु यह प्रथा अच्छी नहीं समझी जाती थी । भारत में बसने के बाद मुसलमान हिन्दुओं के ही समान सगुन में विश्वास करने लगे । मुस्लिम अमीरों के अन्धविश्वास में कुछ नफासत भी आने लगी । 106 / साम्प्रदायिकता