पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/१०६

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हुमायूं और अकबर हर रोज पोशाक उस रंग की पहनते थे जो उस दिन के स्वामी ग्रह का रंग होता था। सौभाग्यवती मुस्लिम महिलाएं भी मांग में सिन्दूर लगाने तथा नाक में नथ और हाथ में शंख की चूड़ियां पहनने लगीं। विवाह के अवसर पर सोहागपुरा ले चलने की प्रथा भी मुसलमानों के यहां हिन्दुओं की देखा-देखी चली है। हिन्दू जैसे श्राद्ध करते हैं, कुछ उसी प्रकार मुसलमान भी मृत व्यक्तियों के नाम पर भोज करने और खैरात बांटने लगे। हिन्दुओं की जाति प्रथा ने भी मुस्लिम समाज को प्रभावित किया और मुसलमान भी शरफ और रजील जातों का भेद करने लगे एवं जुलाहों और धुनियों के साथ शरीफ जात वालों को खाने-पीने में आपति होने लगी। बिहार में छोटी जात वाले मुसलमान भी छठ का व्रत (सूर्य-पूजा) रखने लगे और बंगाल में वे शीतला माता की पूजा करने लगे। सच पूछिये तो हिन्दुत्व के दर्शन - पक्ष का प्रभाव इस्लाम पर उतना ही रहा, जितना सूफी मत पर पड़ चुका था। बाकी बातों में हिन्दू समाज की रूढ़ियों और अन्धविश्वासों का ही प्रभाव मुस्लिम -समाज पर पड़ा और वह इस कारण कि मुसलमान प्राय: छोटे हिन्दू ही हुए थे जो बड़े हिन्दुओं के नैतिक रोब- दाब में थे। ये बेचारे इस्लाम में दीक्षित होने पर भी अपने पैतृक समाज की कुरीतियों को नहीं छोड़ सके । मुगलकाल आते आते शबे-बरात का पर्व सारे भारत के मुसलमानों में मनाया जाने लगा। यह शायद, शिवरात्रि का अनुकरण था क्योंकि शिवरात्रि उस समय बड़ी ही धूमधाम से मनायी जाती थी। ताजिये का रिवाज भी भारत को छोड़कर और किसी देश में नहीं है। यह कदाचित्, रथयात्रा के अनुकरण पर निकला था। हिन्दुओं ने मुसलमानों को जातिवाद का जहर पिलाया, बदले में मुसलमानों ने हिन्दुओं को पर्दे का शाप दिया । हिन्दुओं की देखा-देखी, मुसलमानों में भी ऊंच-नीच का भेद चलने लगा एवं यह प्रथा प्रचलित हो गई कि सैयद शेख की बेटी ले सकता है, किन्तु, शेख सैयद की बेटी से ब्याह नहीं कर सकता। स्नान की आदत मुसलमानों ने हिन्दुओं से ली। अरब के लोग पानी के अभाव में स्नान कम करते थे। पीछे हर देश के मुसलमान नहीं नहाने अथवा कम नहाने को अपना कर्तव्य मानने लगे। लेकिन, भारत में स्नान जनित आनन्द से वे काफी प्रभावित हुए। मुगलों के समय में तो मुसलमानों में नहाना इतना लोकप्रिय हो उठा कि बड़े-बड़े शहरों में स्नानागार के रोजगार वैसे ही चलने लगे जैसे आज होटल चलते हैं। एक आगरा शहर में ही कोई आठ सौ हम्माम थे। ऊंचे तबके के हिन्दुओं ने मुसलमानी खान-पान और पोशाकें, खुशी-खुशी, अपना ली। परिशिष्ट / 107