पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/१०७

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बाकी तबकों में भी, हिन्दुओं की पगड़ी मुसलमानों ने और मुसलमानों की अचकन हिन्दुओं ने अपनाई । बिरियानी पकाने का रिवाज भारत में मध्य- पूर्वी एशिया से आया और हुक्के का रिवाज यहां इसलिए चला कि पुर्तगाली लोगों ने, मुसलमानों के समय में ही, भारत में तम्बाकू का प्रचार किया था । हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच जो समान रीति रिवाज और आदतें प्रचलित हैं, उनकी काफी लम्बी सूची राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक, ‘खंण्डित भारत' में दी है । मुसलमानों के भीतर कई सम्प्रदाय हैं, जिनका उद्भव और विकास हिन्दू-प्रभावों के कारण हुआ है। इनमें से एक सम्प्रदाय का नाम इस्लामिया है। खोजा लोग इसी सम्प्रदाय के हैं। खोजा सम्प्रदाय के कई विश्वास ऐसे हैं जिनमें हिन्दुत्व के वैष्णव-मत और इस्लाम के शिया-पंथ का मिश्रण दिखायी देता है। इस सम्प्रदाय की एक मान्यता यह भी है कि हजरत अली विष्णु के दसवें अवतार थे । खोजा लोगों की मस्जिदें अलग होती हैं। सामान्यतः, वे साधारण मस्जिदों में नमाज पढ़ने नहीं जाते हैं। इसी प्रकार, अली-इलाहिया सम्प्रदाय के मुसलमान आत्मा के आवागमन में विश्वास करते हैं । अहिंसा और मुसलमान मांस-भक्षण और भोग-लौलुप्य भारत में कम नहीं है। फिर भी शाकाहार, अहिंसा और गरीबी में सन्तुष्ट रहने का भाव, ये तीन गुण, विशेष रूप से भारतीय माने जाते हैं । यदि यह जानना हो कि किसी विदेशी पर भारत का कितना प्रभाव और कहां तक पड़ा है, तो देखना यह चाहिये कि उस आदमी ने मांस खाना कुछ कम किया है या नहीं, वह पहले की अपेक्षा अब अधिक जीवों को मारता है या कम जीवों को और गरीबी के प्रति उसका दृष्टिकोण क्या है। भारतीय अहिंसा का प्रभाव, सबसे पहले, इस्लाम के सर्वोतम मानवों, यानी सूफियों पर पड़ा । बल्कि यह प्रभाव इस्लाम पर अरब में ही पड़ने लगा था। जब इस्लाम भारत में फैलने लगा तो मुस्लिम साधु और फकीर, अधिक से अधिक, शाकाहार की ओर मुड़ने लगे। उनकी देखा-देखी मांसाहार का कुछ थोड़ा त्याग गृहस्थ भी करने लगे। किन्तु अहिंसा का प्रभाव हुमायूं, अकबर और जहांगीर पर सबसे अधिक था। हुमायूं जब लौटकर दुबारा भारत-विजय के काम में लगा, तब कई महीनों तक उसने मांस खाना और शराब पीना छोड़ दिया था। उसका निश्चित मत था कि भक्ति और मांसाहार, दोनों काम साथ-साथ नहीं चल सकते और जो व्यक्ति ईश्वर का भक्त है, उसे गो-मांस तो हरगिज नहीं खाना चाहिये। अकबर, 108 / साम्प्रदायिकता