पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/१०८

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सामान्यतः, मांस खाना पसन्द नहीं करता था। शुक्रवार और रविवार तथा हिन्दू- माह की प्रतिपदा तिथि को वह नियमपूर्वक निरामिष भोजन करता था । इसके सिवा, वर्ष के दो खास महीनों में वह किसी भी दिन मांस नहीं खाता था। इन दो महीनों में एक वह था जो अकबर का जन्म- माह पड़ता था। पीछे चलकर तो अकबर ने मांस खाना बिल्कुल ही छोड़ दिया था- यहां तक कि प्याज और लहसुन से भी परहेज करने लगा था। जहांगीर मांस का प्रेमी था, लेकिन, वह भी गुरुवार और रविवार को मांस-मछली नहीं खाता था । अन्य आदान-प्रदान इस्लाम का प्रभाव अमीरों की पोशाक और खान-पान पर भी पड़ा तथा रहन सहन एवं लिबास में ऊंचे तबकों के हिन्दुओं और मुसलमानों में कोई फर्क नहीं रह गया । मुगल अमीरों ने बहुत सी बातें हिन्दुओं की अपना लीं। इसी प्रकार, हिन्दू अमीर भी बहुत सी बातों में मुसलमानी ढंग अपनाने लगे। संगीत इस्लाम में वर्जित था, किन्तु सूफी तब भी संगीत के बड़े प्रेमी थे बल्कि यह कहना चाहिए कि सूफियों के यहां संगीत साधना का एक अंग समझा जाता था। भारतीय एवं ईरानी संगीत के मिलन से नयी-नयी चीजें निकल पड़ीं। ख्याल का अविष्कार जौनपुर के नवाब सुल्तान हुसेन शर्की ने किया था एवं कौव्वाली, कदाचित्, अमीर खुसरो की ईजाद है। कौव्वाली का आरम्भ और प्रचार धार्मिक संगीत के रूप में हुआ, यद्यपि, मस्जिदों में कौव्वाली नहीं पहुंच सकी। बाजों में रबाब, सरोद, दिलरुबा और ताऊस ऐसे हैं जो, शायद, मुसलमानों के लाए हुए हैं अथवा उनके ये नाम मुसलमानों के दिए हुए हैं। अमीर खुसरो के बारे में कहा जाता है कि वीणा को देखकर सितार का आविष्कार उन्होंने किया था तथा मृदंग पर से तबले भी उन्होंने निकाले थे। बीजापुर के इब्राहिम आदिलशाह ने संगीत पर 'नौरस' नाम की किताब लिखी थी। संगीत में हिन्दू और मुसलमान परस्पर जितने समीप हुए, उतने समीप वे कभी नहीं आए। कई धातुओं से रसायन बनाने का रिवाज मुस्लिम आगमन के बाद विकसित हुआ। कागज बनाना और कलई करना भी यहां मुसलमानों ने आरम्भ किया। पत्थर, चांदी और सोने पर मीनाकारी के काम, जामदानी, कलाबतू, जरदोजी, किमखाब और जामेवार भी मुस्लिम-काल में ही चले। गणित, ज्योतिष और वैद्यक में हिन्दू बहुत उन्नति किए हुए थे । इन विद्याओं का ज्ञान इस्लाम के भारत आगमन के पूर्व ही, अरब पहुंच चुका था। अरब वाले बाद को कुछ ज्ञान यूनान से भी लाए एवं इन दोनों को मिलाकर परिशिष्ट / 109