पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भी प्रतिस्पर्धा नहीं थी। आम तौर पर अपनी स्थानीय जरूरतों को पूरा करने के लिए उत्पादन किया जाता था न कि बाहर के बाजार में बेचने के लिए। अंग्रेजों ने जब भारत की शासन सत्ता संभाली तो इस व्यवस्था में भारी फेरबदल हुआ। उत्पादन भी प्रतिस्पर्धात्मक हो गया और अपनी स्थानीय जरूरतों के अलावा बाजार में बेचे जाने के लिए होने लगा। अंग्रेजों की औपनिवेशिक व्यवस्था पहले की सामन्ती व्यवस्था से अधिक लोकतान्त्रिक व प्रतिस्पर्धात्मक थी। इस नई व्यवस्था में हिन्दुओं व मुसलमानों के उच्च वर्ग में राजनीतिक सत्ता में हिस्सेदारी तथा सरकारी नौकरियां प्राप्त करने की होड़/प्रतिस्पर्धा के कारण ही साम्प्रदायिकता का जन्म हुआ। अंग्रेजों ने अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए हिन्दू व मुस्लिम उच्चवर्ग के हितों की टकराहट को हवा दी, क्योंकि वे 1857 में हिन्दुओं मुसलमानों की एकता को देख चुके थे। और हिन्दू व मुसलमानों में फूट डालने के लिए यह नीति काम कर गई। स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी सुंदरपाल की 1929 में 'भारत में अंग्रेजी राज' नामक पुस्तक प्रकाशित हुई जिसमें अंग्रेजी शासकों की 'फूट डालो और राज करो' की नीति के तहत साम्प्रदायिकता को प्रसारित करने की मंशा को उनके दस्तावेजों के माध्यम से बताया है। 'इसके कुछ साल बाद एक अंग्रेज अफसर ने लिखा था— 'हमारे राजनैतिक, दीवानी और फौजी तीनों तरह के भारतीय शासन का उसूल, ‘फूट फैलाओ और शासन करो' होना चाहिए।' अभी तक हमने साम्प्रदायिक और धार्मिक पक्षपात के द्वारा ही मुल्क को वश में रखा है— हिन्दुओं के खिलाफ मुसलमानों को और उसी तरह अन्य जातियों को एक-दूसरे के खिलाफ ।' विप्लव के बाद कर्नल जांन कोक ने, जो इस समय मुरादाबाद की पलटनों का कमांडर था, लिखा कि 'हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि भिन्न-भिन्न धर्मों और जातियों के लोगों में हमारे सौभाग्य से जो अनैक्य मौजूद है उसे पूरे जोरों में कायम रखा जाए, हमें उन्हें मिलाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। भारत सरकार का उसूल यही होना चाहिए— 'फूट फैलओ और शासन करो।'s 1883 में जब वायसराय कार्यकारिणी परिषद् में पहली बार 'स्थानीय स्वशासन बिल' प्रस्तुत किया गया तो मुस्लिम समाज सुधारक सर सैयद अहमदखान ने दो सम्प्रदायों के बीच नगरपालिका में सीटों की संख्या के बंटवारे को लेकर विरोध किया। इस तरह चुनावों के माध्यम से सत्ता में हिस्सेदारी को लेकर हिन्दू व मुसलमानों के उच्चवर्ग में विवाद का जन्म हुआ और धर्म का नाम लेकर निम्न वर्ग को अपने इर्द-गिर्द इकट्ठा करने के लिए यानी अपनी संख्या बढ़ाने के लिए साम्प्रदायिक चेतना का प्रचार शुरू किया और अंग्रेजों ने इसको पूरी हवा दी। ज्यों-ज्यों स्वतन्त्रता आन्दोलन तेज होता साम्प्रदायिकता / 13 -