पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/१८

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9 नहीं हो सकता और साम्प्रदायिक व्यक्ति कभी धार्मिक हो ही नहीं सकता। यदि कोई धर्म में, ईश्वर में या खुदा में विश्वास करता है और मानता है कि यह सृष्टि ईश्वर/ खुदा की रचना है तो उसे सबको मान्यता देनी चाहिए। यदि उसकी ईश्वर / खुदा की सत्ता में जरा भी आस्था है तो वह सभी लोगों को उसकी संतान समझेगा और समान समझेगा इसके विपरीत जो धर्म में और धार्मिक विश्वासों में आस्था के विपरीत स्वार्थों से घिरा है तो वह सबको समान नहीं समझेगा और वह अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए साम्प्रदायिकता के विचार को ग्रहण करेगा। साम्प्रदायिक व्यक्ति किसी दूसरे सम्प्रदाय क्या अपने सम्प्रदाय में भी समानता - बराबरी - भाईचारे के विपरीत होगा और अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए असमानता की विचारधारा को अपनाएगा। इस बात को एक उदाहरण के माध्यम से समझा जा सकता है। स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान एक तरफ महात्मा गांधी थे जो स्वयं को सनातनी हिन्दू कहते थे, जनेऊ धारण करते थे। प्रार्थना सभाएं करते थे, 'रघुपति राघव राजा राम' की आरती गाते थे । हिन्दू रिवाजों- मान्यताओं में विश्वास जताते थे, ईश्वर में विश्वास करते थे, हिन्दू-ग्रन्थों का आदर करते थे। लेकिन महात्मा गांधी साम्प्रदायिक नहीं थे, सभी धर्मों का और उनके मानने वालों का आदर करते थे। उन्होंनें धर्म के आधार पर राष्ट्र बनाने का विरोध किया। इस आदर्श के लिए उन्होंने अपनी जान भी दे दी। धर्म-निरपेक्ष राज्य के पक्के समर्थक थे, धर्म को व्यक्ति का निजी ( personal) मामला मानते थे। दूसरी तरफ इसके विपरीत वीर सावरकर थे जिनकी हिन्दू धर्म में, इसके रीति-रिवाजों, विश्वासों - मान्यताओं में आस्था नहीं थी बल्कि उनका ईश्वर में भी विश्वास नहीं था, लेकिन उनको धर्म के आधार पर ' हिन्दू राष्ट्र' चाहिए था। उन्होंने धर्म के आधार पर ' हिन्दू महासभा' का गठन किया; उनको धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र स्वीकार नहीं था जबकि धर्म से उनका कोई सरोकार नहीं था। इसी तरह मुसलमानों में देखा जा सकता है। एक तरफ मौलाना अबुल कलाम आजाद थे जो इस्लाम की मान्यताओं में विश्वास रखते थे, कुरान पर चार - भागों में टीका लिखी, जो पांचों समय नमाज पढ़ते थे और नियमित रूप से मस्जिद जाते थे लेकिन वे धर्म को निजी मामला समझते थे। धर्म निरपेक्ष राष्ट्र में विश्वास करते थे । धर्म के आधार पर 'पाकिस्तान' की मांग करने वालों का मुखर विरोध किया। आजाद ने कहा कि मैं मुसलमान हूं, और गर्व के साथ अनुभव करता हूं कि मुसलमान हूं । इस्लाम की तेरह सौ बरस की शानदार रिवायतें मेरी पैतृक संपति हैं। मैं तैयार नहीं हूँ कि इसका कोई छोटे- से-छोटे हिस्सा भी नष्ट दूं। इस्लाम की तालीम, इस्लाम का इतिहास, इस्लाम धर्म और साम्प्रदायिकता / 19