पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/२०

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पूर्णरूपेण खो चुके हैं। इसीलिए इन नेताओं के आदेश का पालन करते समय वे अपने वास्तविक मंगल और पाप में भेद करना तक अपराध समझते हैं। यद्यपि मनुष्य होने के नाते वे मूलत: एक ही वृक्ष की भिन्न-भिन्न शाखाएं हैं तथापि केवल अपने मतवाद को स्थापित करने के लिए और साम्प्रदायिक भावना से प्रेरित होकर वे एक-दूसरे की हत्या करना अथवा अत्याचार करना एक विशेष पुण्य का कार्य मानते हैं । मिथ्याचार, चोरी, डकैती, व्यभिचार आदि निकृष्टतम दुष्कार्य जो कि आत्मा के लिए अमंगलकारी एवं साधारण मानव के लिए भी अहितकारी हैं, ऐसे पापकर्मों से वे वेल इसलिए नहीं हिचकते कि उन्हें विश्वास है कि उनके धार्मिक नेता उन्हें पाप से मुक्ति दिला देंगे मनुष्य अपना अमूल्य समय ऐसी पुराण कथाओं के पाठ में व्यतीत करता है, जिन पर विश्वास करना असंभव लगता है। परंतु इन्हीं कथाओं से प्राचीन और नए धार्मिक नेताओं पर उनका विश्वास मानो और अधिक दृढ़ होता है। 2 धर्म के प्रतीकों और धर्म के विश्वासों के सहारे ही साम्प्रदायिकता की विष- बेल फैलती है। स्वतन्त्रता पूर्व समय में 1938 तक मुस्लिम लीग का आधार नहीं बढ़ा। जमींदारों और कुछ उच्च मध्यवर्ग तक ही साम्प्रदायिक चेतना का प्रसार-प्रभाव था, लेकिन जब जिन्ना ने 1938 के बाद धार्मिक प्रतीकों का सहारा लिया, मुल्ला-मौलवियों का तथा धार्मिक स्थलों का सहारा लिया तो उसका आधार बढ़ा और अपने आक्रामक प्रचार से लोगों की चेतना में यह बात डाल दी कि मुसलमानों के लिए अलग देश बने बिना न तो इस्लाम सुरक्षित है और न ही इस्लाम को मानने वाले । इसी तरह आजादी के कुछ समय बाद तक साम्प्रदायिकता हाशिये पर ही रही जनसंघ को 'बनियों' की पार्टी के तौर पर जाना गया और इसकी ताकत कम ही रही लेकिन ज्यों ही धार्मिक भावनाओं से जुड़े मुद्दे उठाएं, धार्मिक प्रतीकों को उठाया तो इसका आकार तेजी से बढ़ता गया और एक राजनीतिक ताकत बनकर उभरी। गौ-रक्षा के बाद, राम जन्म भूमि के विवाद को उठाया, अखाड़ों के महंतों, मंदिरों के पुजारियों, पौराणिक कथावाचकों का, धार्मिक स्थलों का सहारा लिया और इनको अपने प्रचार में जोड़ लिया तो एक बड़ी राजनीतिक शक्ति बन गई। धर्म से जुड़े प्रतीक और विश्वास साम्प्रदायिकता को आधार प्रदान करते हैं। साम्प्रदायिक शक्तियां वातावरण को इतना उन्मादी व विषैला बना देती हैं कि व्यक्ति की धार्मिक चेतना साम्प्रदायिक चेतना में तब्दील हो जाती है। साम्प्रदायिक शक्तियों ने 'राम मंदिर- बाबरी मस्जिद' विवाद को इस तरह से उठाया कि राम को अपना आराध्य मानने वाले आम लोगों, घरेलू स्त्रियों की राम के प्रति श्रद्धा व धार्मिक आस्था 'राम मंदिर' से जोड़ दी। 'राम शिला पूजन' आदि के माध्यम से इससे धर्म और साम्प्रदायिकता / 21