पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/२१

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जुड़ गए, जबकि वे आम जीवन में साम्प्रदायिक नहीं थे। पंजाब में आर्य समाज आन्दोलन की शुरूआत एक धार्मिक सुधार आन्दोलन के रूप में हुई थी, लेकिन वह साम्प्रदायिक आन्दोलन बन गया । अलीगढ में मुस्लिम आंदोलन एक सुधारवादी आन्दोलन था, लेकिन अन्ततः वह साम्प्रदायिक आन्दोलन में बदल गया । आखिर लोग यही कहते हैं कि अपने-अपने धर्म का पालन सख्ती से करें तो साम्प्रदायिक समस्या उत्पन्न नहीं हो सकती। एक अच्छा या पक्का हिन्दू और अच्छा या पक्का मुसलमान होना बेहतर है। 'अच्छे' या 'पक्के' का अर्थ लिया जाता है जो धर्म के कर्मकांडों को, पूजा-विधानों को, व दार्शनिकता को मानता है। यानी कट्टर धार्मिकता और रूढ़िवाद । कट्टर धार्मिक व साम्प्रदायिक में यह अन्तर होता है कि कट्टर धार्मिक व्यक्ति अपने ही धर्म के लोगों को अपना निशाना बनाता है कि वे अपने धर्म की सख्ती से पालन करें और साम्प्रदायिक व्यक्ति दूसरे धर्म के लोगों को अपने निशाने पर रखता है । धार्मिक कट्टरता भी उतनी ही खराब है जितनी कि साम्प्रदायिकता । यह भी कहा जा सकता है कि दोनों एक दूसरे को बढ़ावा देते हैं। कट्टर धार्मिकता व रूढ़िवादिता अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानती है व अपने अतीत को महामंडित करती है व दूसरे धर्म के लोगों को अपना शत्रु भी घोषित करती है। यही साम्प्रदायिकता की विचारधारा के बीज रूप में काम करती है और धार्मिक कट्टरता साम्प्रदायिकता की खुराक बन जाती है। हिन्दुओं में ‘ धर्मयुद्ध’ मुसलमानों में 'जिहाद' तथा ईसाइयों में 'क्रूसेड' कभी साम्प्रदायिकता में बदल जाता है तो कभी आतंकवाद में धर्म की रक्षा के नाम पर कट्टर व्यक्ति कुछ भी कर गुजरता है । धार्मिक कट्टरता व्यक्ति संकीर्ण व अवैज्ञानिक बना देती है। साम्प्रदायिक शक्तियां बड़ी चालाकी से धर्म में निहित संकीर्णता, अंधविश्वास, भाग्यवाद और अतार्किकता का लाभ उठाती हैं। लेकिन ध्यान देने योग्य बात है कि साम्प्रदायिक लोग स्वयं धार्मिक रूढ़ियों को नहीं मानते, ठीक उसी तरह जिस तरह वे धर्म से जुड़े मानवीय मूल्यों और शिक्षाओं को नहीं मानते। साम्प्रदायिक शक्तियां अत्याधुनिक तरीकों व तकनीक का प्रयोग करती हैं। धार्मिक ग्रन्थों व शास्त्रें की दुहाई भी देते हैं और अपने उपदेशों, सभाओं, भाषणों में उनके पालन का आग्रह भी करते हैं। मसलन साम्प्रदायिक हिन्दू मनु द्वारा दी गई वर्णाश्रम व्यवस्था को आदर्श व्यवस्था मानता है। आश्रम व्यवस्था के अनुसार आज न तो कोई संन्यास लेता है और न ही ब्रह्मचारी रहता है। इसी तरह साम्प्रदायिक मुसलमान का व्यवहार शरीअत के अनुसार नहीं होता। हां शास्त्रों को— ग्रन्थों को, रूढ़ियों पुरातन विश्वासों को 22 / साम्प्रदायिकता -