पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/२२

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आम लोगों पर बदले की कार्रवाई की तरह प्रयोग किया जाता है। सभी धर्म की सेवा करने वाले उग्रपंथी चाहे सिक्ख हों, हिन्दू या मुसलमान सबसे पहले स्त्रियों की आजादी छीनते हैं, उनकी व्यक्तिगत पसंद-नापसंद को समाप्त करते हैं, उन पर आचार संहिता थपते हैं। साम्प्रदायिक शक्तियां स्वयं चाहें रूढ़िवादी न हों लेकिन समाज को रूढ़ियों से जकड़ने की कोशिश करती हैं। । इसका एक काफी दिलचस्प उदाहरण है 'शिव सेना' (राजनीतिक पार्टी) स्वयं को हिन्दुओं के हितों की रक्षक घोषित करती है लेकिन इसकी कलई तभी खुल जाती है जब कोई भी मुद्दा आता है जैसे कि रेलवे में भर्ती के लिए उन्होंने कहा कि यह सिर्फ महाराष्ट्र के लिए है और दूसरे प्रान्त के लोगों को शिव सेना के गुण्डों ने पीट-पीट कर भगा दिया । यदि 'शिव सेना' से पूछा जाए कि क्या महाराष्ट्र के बाहर के हिन्दुओं के प्रति उनका व्यवहार धार्मिक है? इसी तरह 'शिव सेना' 'वेलेन्टाइन डे' पर लड़के-लड़कियों के जोड़ों के मुंह पर कालिख पोत देती है, स्त्रियों के लिए 'ड्रेस कोड़' का आह्वान करती है, लेकिन दूसरी तरफ माइकल जैक्शन को बुलाकर ‘सांस्कृतिक' कार्यक्रम भी करवाती है। साम्प्रदायिक शक्तियों की जीत असल में इसी में होती है कि लोग वैसा ही मानते जाएं जैसा वे कहते जाएं। आजादी, उन्मुक्तता व बराबरी का रिश्ता - रिवाज उनकी सारी विचारधारा को खतरा नजर आता है । साम्प्रदायिक शक्तियां व्यक्ति की धार्मिक पहचान पर जोर देती हैं और धार्मिक पहचान को अन्य सभी पहचानों से महत्त्वपूर्ण मानती हैं, जबकि व्यक्ति की कई पहचान होती हैं । यह भी सही है कि धार्मिक पहचान तभी हावी होती है, जबकि अपनी अन्य पहचानों से व्यक्ति का भावनात्मक लगाव- जुड़ाव न हो। इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि एक व्यक्ति हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन, ब्राह्मण, जाट, महार भी होता है, तो वह मजदूर, किसान, कारीगर, व्यापारी, अधिकारी, शिक्षक, राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्त्ता, बेरोजगार भी होता है और उसी समय में वह स्त्री या पुरूष भी होता है । यदि कोई श्रमिक कर्मचारी अपने ट्रेड यूनियन संगठनों से लगाव- जुड़ाव रखता है तो वह अपनी पहचान भी उसी आधार पर बनाता है, इसके विपरीत संगठन कमजोर हैं या व्यक्ति जुड़ाव नहीं रखता तो वह अपनी पहचान बदलता रहता है। कार्य-स्थल पर वह कर्मचारी श्रमिक की पहचान रखता है, अपने समाज परिवार में जाकर वह जातिवादी, पुरुषवादी या साम्प्रदायिक कुछ भी हो सकता है। व्यक्ति की धार्मिक पहचान को मजबूत करने के लिए साम्प्रदायिक शक्तियां इसीलिए तरह तरह के कीर्तन, संत्संग, धार्मिक यात्रएं आयोजित करती हैं, क्योंकि धार्मिक पहचान को साम्प्रदायिकता में बदलना आसान होता है। - धर्म और साम्प्रदायिकता / 23